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महाकुंभ में भगदड़: 30 श्रद्धालुओं की मौत, सरकार ने 17 घंटे बाद दी पुष्टि, 25 लाख की सहायता की घोषणा
प्रयागराज उत्तर प्रदेश: महाकुंभ में आयोजित शाही स्नान के दौरान भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई, जिसमें 30 श्रद्धालुओं की दर्दनाक मौत हो गई। घटना के 17 घंटे बाद प्रशासन ने इसकी आधिकारिक पुष्टि की।
शाम 6:30 बजे मेला अधिकारी विजय किरण आनंद और DIG वैभव कृष्णा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हादसे की जानकारी दी। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस त्रासदी पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है।
भीड़ नियंत्रण में विफल रहा प्रशासन
स्नान के दौरान लाखों की भीड़ उमड़ी, लेकिन पुलिस-प्रशासन की तैयारियां नाकाफी साबित हुईं। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, भगदड़ की शुरुआत घाट नंबर 4 पर हुई, जहां लोग एक-दूसरे को धक्का देते हुए गिरने लगे। मौके पर अफरा-तफरी का माहौल बन गया, लेकिन सुरक्षा बल हालात को नियंत्रित करने में नाकाम रहे।
1.5 करोड़ स्नान करने वालों की गिनती तुरंत, लेकिन 30 मौतों की पुष्टि में 17 घंटे क्यों?
हैरानी की बात यह है कि सरकार ने महज एक घंटे में 1.5 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान करने का आंकड़ा जारी कर दिया, लेकिन 30 मौतों की पुष्टि करने में 17 घंटे क्यों लग गए? क्या मौत के आंकड़े को छिपाने की कोशिश हो रही थी, या फिर प्रशासन हालात को संभालने में पूरी तरह विफल रहा?
हादसे पर क्या बोले अधिकारी?
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अधिकारियों ने हादसे को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए कहा कि “स्थिति अब नियंत्रण में है। घायलों का इलाज कराया जा रहा है और मृतकों की पहचान की जा रही है।” लेकिन सवाल उठता है कि जब इतनी बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ने की संभावना थी, तो प्रशासन ने पहले से पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं किए?
सहायता की घोषणा, लेकिन जवाबदेही का सवाल बरकरार
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये देने की घोषणा की है, लेकिन क्या सिर्फ मुआवजा ही इस त्रासदी का हल है? प्रशासन की लापरवाही से 30 परिवार उजड़ गए, क्या किसी अधिकारी की जिम्मेदारी तय की जाएगी?
कुंभ का ऐतिहासिक आयोजन, लेकिन बार-बार दोहराई जा रही हैं गलतियां
महाकुंभ जैसे आयोजनों में हर बार भीड़ नियंत्रण एक बड़ा मुद्दा बनता है, लेकिन प्रशासन की अव्यवस्था और कुप्रबंधन के कारण हादसे होते रहते हैं। सवाल यह है कि क्या इन त्रासदियों से कोई सबक लिया जाएगा या फिर हर बार सिर्फ मुआवजा देकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाएगा?
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