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राम रहीम को मिली फिर पैरोल: कानून का मजाक या सत्ता का खेल?

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को एक बार फिर पैरोल मिल गई है, और इस बार भी यह घटना सवालों के घेरे में है। सूत्रों के मुताबिक, मंगलवार सुबह 5:26 बजे रोहतक जेल प्रशासन ने गुपचुप तरीके से उसे जेल से बाहर निकाला। हैरानी की बात यह है कि इस बार राम रहीम बागपत के बरनावा नहीं, बल्कि सिरसा स्थित अपने डेरे में रहेगा।

2017 में सजा पाने के बाद से यह 12वीं बार है जब राम रहीम जेल से बाहर आया है। हर बार उसकी पैरोल को लेकर सवाल उठते हैं, लेकिन सरकारें चुप्पी साध लेती हैं। इस बार भी यही हो रहा है। हाल ही में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा सरकार पर राम रहीम को पैरोल दिलाने का आरोप लगा था, और अब दिल्ली चुनावों के दौरान यह पैरोल फिर से राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है।

क्या यह सिर्फ संयोग है?

हर बार जब चुनाव करीब होते हैं, राम रहीम को पैरोल मिल जाती है। क्या यह महज इत्तेफाक है या इसके पीछे सत्ता का खुला खेल चल रहा है? एक ऐसा व्यक्ति जिसे बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर मामलों में दोषी ठहराया गया है, उसे बार-बार पैरोल देना क्या कानून का मजाक उड़ाना नहीं है?

सत्ता और धर्म का गठजोड़?

राम रहीम के समर्थकों का एक बड़ा वोट बैंक है, और सरकारें इस वोट बैंक को साधने के लिए हर बार उसे पैरोल देती हैं। क्या एक दोषी को बार-बार बाहर लाकर आम जनता के विश्वास और कानून की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाई जा रही?

जनता का आक्रोश बढ़ा

सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर लोगों का गुस्सा फूट रहा है। कई लोगों का कहना है कि यह “कानून का दोहरा मापदंड” है। एक ओर आम आदमी छोटी-छोटी गलतियों पर जेलों में सड़ता है, तो दूसरी ओर ऐसे गंभीर अपराधी को बार-बार जेल से बाहर लाया जाता है।

यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि सत्ता के राजनीतिक एजेंडे को भी उजागर करती है। राम रहीम को पैरोल मिलना कानून के दायरे में सही है या सत्ता का खेल, यह सवाल अब हर देशवासी के मन में है।

 

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