उत्तराखण्ड
समान नागरिक संहिता के खिलाफ हाईकोर्ट में गूंजा विरोध, वकील वृंदा ग्रोवर ने सरकार को घेरा
समान नागरिक संहिता के खिलाफ हाईकोर्ट में गूंजा विरोध, वकील वृंदा ग्रोवर ने सरकार को घेरा
नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय में समान नागरिक संहिता (UCC) के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर बुधवार को अहम सुनवाई हुई। उत्तराखंड महिला मंच की उमा भट्ट, कमला पंत और समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार द्वारा दाखिल इस याचिका में UCC के प्रावधानों को नागरिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताते हुए इसे चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने लिव-इन जोड़ों की सुरक्षा और उनकी निजता की रक्षा की भी मांग की है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की प्रख्यात अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने सरकार के कानून को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कोर्ट के समक्ष तर्क रखा कि UCC के 392 प्रावधान और नियम नागरिकों की निजी जिंदगी पर अतिक्रमण करने का प्रयास हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून पुट्टा स्वामी जजमेंट का उल्लंघन करता है, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि राज्य नागरिकों की निजी जानकारी एकत्र नहीं कर सकता।
“UCC निजता के अधिकार का हनन” – वृंदा ग्रोवर
वकील ग्रोवर ने अपने तर्कों में कहा कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने के बजाय, प्रशासन और पुलिस को मनमाने ढंग से हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है। उन्होंने कहा,
“UCC के माध्यम से सरकार यह तय करेगी कि हम किसके साथ रह सकते हैं या नहीं। यह कानून पंजीकरण प्रक्रिया और अतिरिक्त जानकारी के नाम पर नागरिकों को प्रताड़ित करने का रास्ता खोलता है।”
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह कानून लिव-इन जोड़ों को सामाजिक नैतिकता की बेड़ियों में जकड़ने का प्रयास है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
“लिव-इन जोड़ों के खिलाफ उत्पीड़न को बढ़ावा देगा यह कानून”
वकील ग्रोवर ने इस तर्क का जवाब देते हुए कहा,
“इस कानून को महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर लाया गया है, लेकिन हकीकत में यह उन जोड़ों के उत्पीड़न का रास्ता खोल देगा, जो बहुसंख्यकवादी सामाजिक मान्यताओं का पालन नहीं करते।”
उन्होंने कहा कि यह माता-पिता और कट्टरपंथी समूहों को पंजीकृत लिव-इन जोड़ों की निजी जानकारी तक पहुँच देकर उनके जीवन में हस्तक्षेप करने का अवसर देगा। ग्रोवर ने कोर्ट को यह भी बताया कि कोई भी व्यक्ति किसी लिव-इन जोड़े की वैधता पर सवाल उठाते हुए शिकायत दर्ज करा सकता है, जिससे उत्पीड़न और हिंसा की घटनाएं बढ़ने की आशंका है।
राज्य सरकार का पक्ष और कोर्ट का आदेश
राज्य की ओर से उपस्थित महान्यायवादी (SG) ने अदालत को आश्वासन दिया कि “सरकार मामले पर नजर बनाए हुए है और किसी के खिलाफ जबरदस्ती या कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी।”
इसके बाद कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा और यह स्पष्ट किया कि “यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाती है, तो वह इस पीठ के समक्ष आवेदन कर सकता है।”
वकीलों की टीम को मिला समर्थन
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, देविका तुलसियानी और उत्तराखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता नवनीश नेगी का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस मामले में मजबूती से पैरवी की।
यह मामला अब आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया है, और देखना होगा कि उच्च न्यायालय इस पर क्या अंतिम निर्णय सुनाता है।
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