उत्तराखण्ड
शराब के खिलाफ महिलाओं का ऐलान: जब तक ठेकेदार शराब वापस नहीं ले जाएगा, तब तक नहीं हटेंगी एक इंच भी!
शराब के खिलाफ महिलाओं का ऐलान: जब तक ठेकेदार शराब वापस नहीं ले जाएगा, तब तक नहीं हटेंगी एक इंच भी!
पाटकोट गांव में उबाल, शराब की दुकान के खिलाफ फूटा महिलाओं का गुस्सा, कई संगठनों ने दिया समर्थन
रामनगर।
दूरस्थ और शांतिप्रिय पाटकोट ग्रामसभा इन दिनों उबाल पर है। वजह है नवसृजित विदेशी शराब की दुकान, जिसे लेकर ग्रामीण महिलाएं लगातार मोर्चा खोले हुए हैं। रविवार को भी दर्जनों महिलाओं ने दुकान के बाहर डेरा डालकर विरोध जारी रखा और साफ शब्दों में एलान किया—”जब तक ठेकेदार शराब की बोतलें वापस नहीं ले जाएगा, हम यहां से हटने वाली नहीं हैं।”
महिला आंदोलन की अगुवाई कर रहीं बबीता बिष्ट ने कहा कि महिलाओं के तीखे विरोध के चलते अभी तक ठेकेदार दुकान खोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका है। महिलाएं दिन-रात दुकान के बाहर डटी हुई हैं। उन्होंने दो टूक कहा, “शराब की एक बूंद भी गांव में नहीं उतरने देंगे।”
इस आंदोलन को अब सामाजिक संगठनों का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है। इंकलाबी मजदूर केंद्र से जुड़े रोहित रुहेला ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा, “शांतिप्रिय गांव की फिजा में सरकार ज़हर घोल रही है। गांव की शांति भंग कर उसे अराजकता की ओर धकेला जा रहा है।”
सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत पांडे ने तीखा सवाल उठाया—“जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक ढंग का नहीं, वहां सरकार शराब की दुकान खोल रही है। क्या यही विकास है?” उन्होंने कहा कि शराब के चलते असामाजिक तत्वों का बोलबाला होगा और महिलाओं व बच्चों का जीवन संकट में पड़ जाएगा।
इस मौके पर गांव की अन्य महिलाएं—दयमंती देवी, प्रेम देवी, गुड्डी, तुलसी छिमवाल, पूनम देवी, कमला देवी, गीता देवी, सुशीला देवी, विमला देवी, जानकी देवी, पार्वती देवी, गोदावरी देवी, सुमन, पद्मा, हेमा, तुलसी देवी सहित सैकड़ों महिलाएं मौजूद रहीं।
समाजवादी लोक मंच, संयुक्त संघर्ष समिति, महिला एकता मंच जैसे संगठनों ने भी पाटकोट पहुंचकर आंदोलन को समर्थन दिया और सरकार से तुरंत गांव से शराब की दुकान हटाने की मांग की।
जनता के सवाल तीखे हैं—क्या सरकार सुनेगी?
अब सवाल उठता है कि जिस गांव में बुनियादी सुविधाओं की हालत खस्ता है, वहां सरकार शराब के ठेके खोलने में क्यों रुचि दिखा रही है? क्या जनता की आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है या फिर कोई गहरा खेल चल रहा है?
पाटकोट की महिलाएं अब पीछे हटने को तैयार नहीं। उनका कहना है, “शराब जाएगी, तब ही हम जाएंगे!”
अब देखना यह है कि सरकार इस बुलंद आवाज को सुनेगी या गांव की जमीन पर टकराव और बढ़ेगा।




