Connect with us

उत्तराखण्ड

आदिवासी क्षेत्रों में सैन्य कार्रवाई पर राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग, ऑपरेशन कगार पर वार्ता का विकल्प तलाशने की अपील

रामनगर।

तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में चल रहे ‘ऑपरेशन कगार’ को लेकर समाजवादी लोक मंच ने केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला है। मंच ने इस सैन्य अभियान को अविलंब रोकने की मांग करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से हस्तक्षेप की अपील की है।

समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीष कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि केंद्र सरकार देश के अपने ही नागरिकों के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए है। उन्होंने कहा, “भारत सरकार को सैन्य बलों के प्रयोग की बजाय वार्ता का मार्ग अपनाना चाहिए। जिन मुद्दों पर माओवादी और आदिवासी समाज संघर्ष कर रहे हैं, उन पर समाधान पेश करना चाहिए, न कि उनका दमन।”

‘खनिज लूट’ के खिलाफ आदिवासी प्रतिरोध

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि देश के बहुमूल्य खनिज संसाधनों—कोयला, लोहा और अन्य खनिजों—को लेकर कॉर्पोरेट जगत और विदेशी कंपनियां अपनी तिजोरियां भरना चाहती हैं। इस संदर्भ में मंच ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में लॉयड मेटल्स एंड एनर्जी लिमिटेड को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को उदाहरण के रूप में पेश किया।

यह मंजूरी 937 हेक्टेयर वन भूमि को हस्तांतरित कर 1.23 लाख पेड़ों की बलि देने की अनुमति देती है। मंच ने चेताया कि इससे न सिर्फ पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचेगा, बल्कि वहां की आदिवासी आबादी का जीवन और संस्कृति भी खतरे में पड़ जाएगी। इसी विनाशकारी परियोजना का विरोध माओवादी और आदिवासी समुदाय कर रहे हैं, जिन्हें सरकार ऑपरेशन कगार के जरिए कुचलना चाहती है।

‘ऑपरेशन कगार’ – प्रतिरोध को खत्म करने की साज़िश?

समाजवादी लोक मंच ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के लिए रास्ता साफ करने हेतु ऑपरेशन कगार के नाम पर हिंसक दमन चला रही है। “यह सिर्फ सुरक्षा अभियान नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट हितों की रक्षा में चलाया गया युद्ध है, जिसमें आदिवासी जीवन और लोकतांत्रिक प्रतिरोध को कुचलने की कोशिश हो रही है,” मंच ने आरोप लगाया।

संविधान में है संवाद की गुंजाइश

मंच ने कहा कि भारत का संविधान और लोकतंत्र विरोध के स्वर को सम्मान देने की परंपरा रखते हैं। असम, मणिपुर, नागालैंड और कश्मीर में भी केंद्र सरकार ने अतीत में हथियारबंद संगठनों से वार्ताएं की हैं, ऐसे में माओवादियों और आदिवासियों से बातचीत करने में क्या आपत्ति है?

उन्होंने याद दिलाया कि इससे पहले भी ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ और ‘सलवा जुडूम’ जैसे अभियानों को माओवादी आंदोलन का अंत बताकर प्रचारित किया गया था, लेकिन सच्चाई यह है कि समस्या सैन्य कार्रवाइयों से हल नहीं होती। अब फिर से सरकार ‘ऑपरेशन कगार’ के जरिए 31 मार्च 2026 तक माओवाद खत्म करने का दावा कर रही है, जो कि ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर है।

“बंदूक नहीं, बातचीत से सुलझे मसले”

प्रेस विज्ञप्ति का समापन इस मांग के साथ हुआ कि भारत सरकार को तुरंत ‘ऑपरेशन कगार’ जैसे सैन्य अभियानों को बंद कर माओवादियों और आदिवासी प्रतिनिधियों से शांति वार्ता शुरू करनी चाहिए। मंच का कहना है कि जब तक लोकतांत्रिक संवाद का रास्ता नहीं अपनाया जाएगा, तब तक समस्या का समाधान असंभव है।

Ad Ad Ad

More in उत्तराखण्ड

Trending News

संपादक –

नाम: खुशाल सिंह रावत
पता: भवानीगंज, रामनगर (नैनीताल)
दूरभाष: 9837111711
ईमेल: [email protected]

You cannot copy content of this page