उत्तराखण्ड
रामनगर से बड़ी खबर — अब ढेला रेस्क्यू सेंटर का मीट टेंडर “सुपरविजन मोड” पर!
रामनगर से बड़ी खबर — अब ढेला रेस्क्यू सेंटर का मीट टेंडर “सुपरविजन मोड” पर!
रामनगर: कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के ढेला स्थित रेस्क्यू सेंटर में मांसाहारी वन्य जीवों के लिए भैंस और मुर्गे के मीट सप्लाई का टेंडर कल भरा जाएगा और 18 नवंबर को चयन समिति के सामने खोला जाएगा।
लेकिन स्थानीय सप्लायरों और जानकारों के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या इस बार टेंडर प्रक्रिया सचमुच निष्पक्ष होगी? या फिर पहले की तरह “मैनेजमेंट” का खेल चलने वाला है?
2022 का मामला—दरों में कम बोली के बावजूद टेंडर उड़ाकर दूसरे को कैसे दे दिया गया?
ढेला रेस्क्यू सेंटर का मीट सप्लाई पिछले काफी समय से मरियम ट्रेडिंग कंपनी के पास है।
लेकिन वर्ष 2022 में खुलेआम एक ऐसा खेल हुआ जिसने आज तक सवालों के ढेर खड़े कर रखे हैं।
परवेज़ खान बताते हैं कि—
- उन्होंने टेंडर 290 रुपये प्रति किलो की दर पर भरा था।
- जबकि मरियम ट्रेडिंग कंपनी ने 296 रुपये प्रति किलो की बोली लगाई।
- नियमों के मुताबिक कम बोली वाले के नाम टेंडर होना चाहिए था—और हुआ भी।
- लेकिन चयन समिति ने बाद में एक नई शर्त जोड़कर उनका टेंडर ही निरस्त कर दिया।
- और फिर वही टेंडर मरियम ट्रेडिंग कंपनी को दे दिया गया।
यानी साफ़ तौर पर आरोप है कि सबकुछ पहले से सेट था, और टेंडर सिर्फ औपचारिकता भर था।
अब फिर नया टेंडर — और पुराने सवाल फिर जिंदा
इस बार भी tender प्रक्रिया शुरू हो रही है।
लेकिन परवेज़ खान का साफ कहना है—
“अगर इस बार भी पारदर्शिता नहीं हुई, अगर फिर वही खेल हुआ… तो मैं हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाऊंगा।”
उनकी यह चेतावनी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उन सभी सप्लायरों की आवाज़ है जिन्हें लगता है कि ढेला रेस्क्यू सेंटर का टेंडर सालों से किसी ख़ास को फायदा पहुँचाने की “गारंटीड स्कीम” बना हुआ है।
अब सवाल अधिकारियों से—क्या इस बार सब कुछ खुली किताब होगा?
ढेला रेस्क्यू सेंटर कोई सब्ज़ी मंडी नहीं, यहां मांसाहारी जानवरों की रोज़मर्रा के आहार की व्यवस्था होती है।
और अगर यहां भी मनमर्जी, मिलीभगत और सेटिंग चलेगी, तो यह वन विभाग की साख पर सीधा धब्बा है।
- क्या टेंडर खोलने की प्रक्रिया खुली और पारदर्शी होगी?
- क्या हर बोलीकर्ता को बराबर मौका मिलेगा?
- क्या चयन समिति वही पुरानी गलती दोहराएगी?
- या इस बार सिस्टम खुद को साफ़ साबित करेगा?
समाप्ति में—अब नज़रें जनता की भी, अदालतों की भी
टेंडर प्रक्रिया में ज़रा-सी भी गड़बड़ी हुई तो मामला ढेला के दफ्तर से निकलकर देहरादून की फाइलों तक और फिर कोर्ट के दरवाज़े तक जाएगा।
और इस बार जनता भी सब देख रही है।
ढेला रेस्क्यू सेंटर का नया टेंडर “पारदर्शिता टेस्ट” है।
अगर ईमानदारी है—तो साबित करो।
अगर मेनेजमेंट है—तो तैयार रहो, सवाल भी उठेंगे और अदालत भी पहुंचेगी।








