उत्तराखण्ड
“छोटे मछलियों पर शिकंजा, मगरमच्छ अब भी आज़ाद! 50 हजार की रिश्वत लेते फंसे बागेश्वर के जिला सैनिक कल्याण अधिकारी सुबोध शुक्ला”
खास रिपोर्ट | एटम बम न्यूज़
उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी एक और मछली पकड़ ली गई है—but the real question remains: मगरमच्छ कब पकड़े जाएंगे?
बागेश्वर जिले के जिला सैनिक कल्याण अधिकारी सुबोध शुक्ला (सेवानिवृत्त कर्नल) को विजिलेंस की टीम ने 50 हजार की रिश्वत लेते रंगेहाथ धर दबोचा। लेकिन असली चिंता की बात यह है कि जब एक अधिकारी 11 महीने का सेवा विस्तार देने के लिए पैसों की मांग करता है, तो ऊपर बैठे उन बड़े मगरमच्छों का क्या, जो पूरे सिस्टम को ही निगल गए हैं?
क्या है पूरा मामला?
विजिलेंस को एक सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी ने शिकायत दी थी कि वह उपनल के माध्यम से सैनिक कल्याण विभाग में अनुबंध पर कार्यरत है। उसका 11 महीने का सेवा विस्तार होना था। लेकिन जिला सैनिक कल्याण अधिकारी सुबोध शुक्ला ने यह सेवा विस्तार देने के बदले 50 हजार रुपए की रिश्वत मांगी।
शिकायत सही पाए जाने पर सतर्कता अधिष्ठान हल्द्वानी के डीएसपी अनिल सिंह मनराल की निगरानी में एक ट्रैप टीम गठित की गई और शनिवार को शुक्ला को उसी के दफ्तर में रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया।
कर्नल से रिश्वतखोर बनने की गिरावट
सेना में सेवा दे चुके एक सेवानिवृत्त कर्नल से ये उम्मीद नहीं की जाती कि वो सैनिकों के अधिकारों की दलाली करेगा। लेकिन सुबोध शुक्ला ने न सिर्फ वर्दी का अपमान किया, बल्कि उन सैनिकों के सम्मान को भी दागदार किया जो देश की सेवा के बाद एक मामूली नौकरी के लिए अधिकारी के सामने हाथ जोड़ने को मजबूर होते हैं।
बड़ा सवाल: मगरमच्छ कब पकड़ोगे?
हर बार की तरह इस बार भी एक “छोटी मछली” पकड़ी गई है। एक अधिकारी जो 50 हजार की डील कर रहा था, उसे तो विजिलेंस ने जाल में फंसा लिया, लेकिन वो लोग जो लाखों-करोड़ों की ‘सेवा विस्तार फैक्ट्री’ चला रहे हैं, वो आज भी कुर्सी पर मज़े से बैठे हैं।
ये पहली बार नहीं जब उपनल, सैनिक कल्याण और संविदा नियुक्तियों के नाम पर घोटाले की बू आई हो। सवाल ये है कि—
- उपनल से जुड़ी नियुक्तियों में पारदर्शिता क्यों नहीं है?
- क्या अन्य जिलों में भी इसी तरह की डील चल रही हैं?
- क्या विजिलेंस सिर्फ पकड़ने लायक छोटे लोगों को ही पकड़ती है?
सवाल साफ है:
जब कोई मालगाड़ी से सामान चुराता है, तो तुरंत पकड़ा जाता है, लेकिन अगर कोई पूरी मालगाड़ी ही ले उड़ता है—तो वो क्यों नहीं पकड़ा जाता?
सरकार से सवाल, सिस्टम से सवाल और सबसे बड़ा सवाल—कब तक?
अगर वाकई भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ना है, तो सिर्फ मछलियों को नहीं, मगरमच्छों को पकड़ो। वरना हर बार छोटी मछली की गिरफ्तारी पर प्रेस रिलीज़ आएगी, फोटो खिंचेंगे, तालियां बजेंगी और असली लुटेरे कुर्सी पर बैठे मुस्कुराते रहेंगे।
लेखक: खुशाल रावत, संपादक – एटम बम
वेबसाइट: www.atombombnews.com







