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उत्तराखण्ड

शिक्षा का जुनून: खाकी छोड़ बच्चों के भविष्य को संवार रहे डॉ. प्रभाकर पाण्डेय

शिक्षा का जुनून: खाकी छोड़ बच्चों के भविष्य को संवार रहे डॉ. प्रभाकर पाण्डेय

– खुशाल रावत

रामनगर। शिक्षा के गिरते स्तर और सरकारी स्कूलों की बदहाली के बीच, एक शिक्षक ऐसा भी है जो खुद को सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं रखता, बल्कि बच्चों के घर-घर जाकर उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित करता है। एमपी हिंदू इंटर कॉलेज के प्रवक्ता (मनोविज्ञान) डॉ. प्रभाकर पाण्डेय न केवल अपनी कक्षाओं में विद्यार्थियों को शिक्षित कर रहे हैं, बल्कि अपनी नौकरी से परे जाकर समाज में शिक्षा की अलख जला रहे हैं।

खाकी छोड़ शिक्षा की दुनिया में प्रवेश

डॉ. प्रभाकर पाण्डेय पहले उत्तराखंड पुलिस सेवा में थे। ड्यूटी के दौरान जब वे स्कूली बच्चों को गलियों और बाजारों में भटकते देखते, तो उनके मन में एक सवाल उठता – “क्या कोई इन बच्चों को सही दिशा दिखाएगा?” सरकारी स्कूलों के बच्चों के चेहरे पर छाए निराशा के भाव और उनके भविष्य को लेकर बनी असुरक्षा ने उन्हें झकझोर कर रख दिया।

इसी सवाल का जवाब तलाशते हुए उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़ शिक्षक बनने का संकल्प लिया। मनोविज्ञान में पीएचडी पूरी करने के बाद, वे प्रवक्ता पद के लिए चयनित हुए और तब से लेकर अब तक शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं।

भारी दुर्घटना भी नहीं रोक पाई जज्बा

शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान देने की दिशा में आगे बढ़ ही रहे थे कि एक सड़क हादसे ने उनकी राह में बाधा डाल दी। लगभग 3-4 साल तक इलाज चला, कई ऑपरेशन हुए, लेकिन अंततः वे दाहिने पांव से दिव्यांग हो गए। इस हादसे ने उनके जीवन को कठिन बना दिया, लेकिन उनका संकल्प अडिग रहा। दर्द और तकलीफों को किनारे रखकर, उन्होंने अपने जीवन को शिक्षा के नाम कर दिया।

‘पहल – एक उम्मीद’ मुहिम बनी मिसाल

कोविड के दौरान जब स्कूल बंद हो गए, तब भी उन्होंने बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकने दी। ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से शिक्षा जारी रखी। इसके बाद 2020 में उन्होंने ‘पहल – एक उम्मीद’ नाम से एक नई योजना शुरू की। इस योजना के तहत, वे विद्यालय समय के बाद बच्चों के घर जाते हैं, उनके अभिभावकों से मिलते हैं और उन्हें बच्चों की शिक्षा को लेकर जागरूक करते हैं।

बच्चों को पढ़ाई में रुचि लेने के लिए प्रेरित करना

अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई में सहयोग देने के लिए तैयार करना

घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करना

यह मुहिम बीते 4 सालों से लगातार जारी है और इसकी सफलता ने उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श बना दिया है।

पुरस्कार और सम्मान – संघर्ष का प्रमाण

शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को पहचानते हुए राज्य सरकार ने उन्हें 2016 में विशिष्ट सेवाओं के लिए सम्मानित किया। इसके अलावा, 2024 में “दक्ष दिव्यांग कर्मचारी राज्य स्तरीय पुरस्कार” से भी नवाजा गया।

“पहल – एक उम्मीद” योजना के तहत उनके योगदान के लिए उन्हें मानपत्र देकर सम्मानित किया गया।

न केवल शिक्षक, बल्कि फिटनेस आइकॉन भी

शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने वाले डॉ. पाण्डेय फिटनेस की दुनिया में भी प्रेरणा का स्रोत हैं। एक पैर से दिव्यांग होने के बावजूद, उन्होंने 2016 और 2023 में बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

समाज के लिए भी समर्पित

डॉ. प्रभाकर पाण्डेय सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं हैं। वे समय-समय पर युवा पीढ़ी को फिटनेस, आत्मनिर्भरता और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करते हैं।

छुट्टियों में भी विद्यालय में बच्चों को अतिरिक्त कक्षाएं देते हैं।

ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से भी पढ़ाई को आसान बनाते हैं।

समाज में जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

सिस्टम के खिलाफ एक मजबूत उदाहरण

जहां सरकारी कर्मचारी काम से बचने के बहाने ढूंढते हैं, वहीं डॉ. प्रभाकर पाण्डेय स्कूल के बाद भी अपने मिशन में जुटे रहते हैं। उनका मानना है कि “बच्चों का भविष्य संवारने के लिए सिर्फ पढ़ाना काफी नहीं, बल्कि उन्हें सही दिशा में प्रेरित करना भी जरूरी है।”

शिक्षा का सच्चा सिपाही

डॉ. प्रभाकर पाण्डेय आज की शिक्षा व्यवस्था में एक प्रेरणास्रोत हैं। अपने मिशन के प्रति समर्पण, दिव्यांगता के बावजूद अटूट हौसला और शिक्षा के लिए किया जा रहा प्रयास हर शिक्षक के लिए मिसाल है। समाज को ऐसे ही शिक्षकों की जरूरत है, जो सिर्फ पढ़ाने तक सीमित न रहें, बल्कि बच्चों के भविष्य को आकार देने के लिए दिन-रात मेहनत करें।

 

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