उत्तराखण्ड
अब दवाइयों पर पड़ रही महंगाई की मार, हो सकती है महंगी
अब धीरे-धीरे महंगाई की मार आम जनता की जेब पर और प्रभाव डालने वाली है क्योंकि दवाइयों के दाम बढ़ने की खबर सामने आ रही है बता दे कि सिडकुल में मध्यम वर्ग की फार्मा इंडस्ट्री में मार्केट से मिल रहे आर्डरों में तीस प्रतिशत की कमी आ गई है। कंपनी रेट और मार्केट के रेट मेल नहीं खाने के कारण उत्पादन में कमी आ गई है। उद्यमी बढ़ती महंगाई और घटते उत्पादन का विकल्प तलाशने को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि बीपी-शुगर सहित जीवनरक्षक दवाएं महंगी हो सकती हैं। हालत ये हैं कि कच्चे माल के दाम बढ़ने और उत्पादन कम होने के बाद अधिकांश कंपनियों को बैंक लोन की किस्तें चुकानी मुश्किल पड़ रही हैं। कच्चा माल महंगा होने का सबसे अधिक असर मध्यम दर्जे की फार्मा कंपनियों पर पड़ा है।
फार्मा कंपनियों के संचालकों का कहना है कि मार्केट से आर्डर मिलने बहुत कम हो गए हैं। क्योंकि पैकेजिंग और कच्चा माल 45 फीसदी महंगा मिल रहा है। वे दवा का दाम बढ़ा नहीं सकते। भाड़ा भी बढ़ गया है, ऐसे में आर्डर कम मिलने पर उत्पादन कम करना मजबूरी बन गई है। उधर, उत्पादन कम होने से उद्यमियों की परेशानी बढ़ रही है। मुनाफा तो दूर खर्चा निकालने में भी दिक्कतें सामने आ रही है। उद्यमी कच्चे माल के दाम कम होने की उम्मीद लगा रहे हैं। जिससे कारोबार दोबारा पटरी पर आ सके। कच्चे माल के दाम बढ़ने का सीधा असर फार्मा सेक्टर पर पड़ा है। सीएंडएफ पूर्व के रेटों पर ही माल उठाना चाहता है जो मुमकिन नहीं है। पुराने रेट पर माल न मिलने पर आर्डर कैंसिल हो रहे हैं। जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है। सरकारी टेंडर का दाम पहले ही लॉक है। सरकार टेंडर के दाम तो बढ़ाती नहीं है।
सरकार ने कंपनियों में बनने वाली दवाइयों के जो दस वर्ष पहले एमआरपी फिक्स किए थे, आज भी वही फिक्स हैं। दस वर्ष में कच्चे माल, डीजल, पेट्रोल आदि के कई गुना दाम बढ़ गए हैं। दवाइयों के एमआरपी भी सरकार को बढ़ाने चाहिए।
अर्चित विरमानी, डायरेक्टर, फार्मा इंडस्ट्री सिडकुल
कच्चे माल की कमी और दाम अधिक होने से मार्केट से 30 प्रतिशत आर्डर में अभी तक कमी आ गई है। मार्केट में कम दाम पर ऑर्डर तो मिलते हैं, लेकिन प्रतिदिन बढ़ रहे कच्चे माल के दाम के बाद उद्यमी मार्केट को उनके अनुसार दाम नहीं दे पा रहे हैं।
विपिन बिष्ट, मैनेजर, एचआर सिनोकेम फार्मास्यूटिकल, सिडकुल ने कहा कि कारोबारी 1-2 माह तक कच्चा माल स्टोर कर सकते हैं। बड़े कारोबारी एक डेढ़ साल तक माल स्टोर कर लेते हैं। ऐसे में छोटे और मध्यम वर्ग के कारोबारियों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।
अनिल शर्मा, अध्यक्ष, सिडकुल फार्मास्यूटिकल एसोसिएसन ने कहा कि मध्यम दर्जे की फार्मा कंपनियां इस वक्त घाटे की ओर चल रही हैं। कच्चे माल के दाम इतने बढ़ चुके हैं कि उद्यमी समझ नहीं पा रहे हैं कि व्यापार कैसे किया जाए। सीएंडएफ से आर्डर लेना महंगा साबित हो रहा है। हर दिन कच्चे माल के दामों पर असर पड़ रहा है। फार्मा से संबंधित पैकिंग और कच्चे माल में 45 प्रतिशत दाम बढ़ गए हैं। कब तक उद्यमी अपनी जेब से खर्च करता रहेगा।