उत्तराखण्ड
हाईकोर्ट का पुलिस पर कड़ा प्रहार: भीड़ के आगे क्यों झुकी पुलिस? चौकी के अंदर तोड़फोड़ पर उठे सवाल, कहा – “ऐसे पुलिसवाले फोर्स में रहने लायक नहीं”
हाईकोर्ट का पुलिस पर कड़ा प्रहार: भीड़ के आगे क्यों झुकी पुलिस? चौकी के अंदर तोड़फोड़ पर उठे सवाल, कहा – “ऐसे पुलिसवाले फोर्स में रहने लायक नहीं”
नैनीताल।
गौमांस के शक में भीड़ द्वारा की गई हिंसा और बैलपड़ाव पुलिस चौकी के भीतर पिकअप वाहन पर तोड़फोड़ के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने साफ कहा कि यह गंभीर मामला है — जब पुलिस चौकी में मौजूद फोर्स के सामने हिंसक भीड़ ने कानून अपने हाथ में लिया, तो फिर पुलिस मूकदर्शक क्यों बनी रही?
कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा – “ऐसे पुलिसकर्मी फोर्स में रहने के लायक नहीं हैं।”
अदालत ने चौकी इंचार्ज और कालाढूंगी SHO की भूमिका की भी जांच के आदेश दिए हैं और कहा कि यह पता लगाया जाए कि आखिर किसकी लापरवाही से उनके कार्यक्षेत्र पुलिस परिसर में यह घटना हुई.
🟥 पुलिस की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल
हाईकोर्ट ने कहा कि घटना के वीडियो फुटेज में तोड़फोड़ करने वाले साफ नजर आ रहे हैं, फिर भी पुलिस ने किसी पर कार्रवाई क्यों नहीं की। कोर्ट ने इसे पुलिस की नाकामी बताते हुए कहा कि इस तरह की लापरवाही सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक है।
🟥 भैंस के मीट की ट्रांसपोर्टिंग को लेकर सख्त निर्देश
अदालत ने कहा कि भैंस के मीट की ट्रांसपोर्टिंग के दौरान वाहन, चालक और परिचालक को पुलिस की ओर से पर्याप्त सुरक्षा दी जाए। जब भी बरेली से रामनगर की ओर भैंस के मीट की गाड़ी चलेगी, तो कालाढूंगी पहुंचने पर वहां की पुलिस को इसकी सूचना दी जाएगी। इसके बाद कालाढूंगी पुलिस के जवान गाड़ी के साथ रहकर उसे सुरक्षित रामनगर तक पहुंचाएंगे।
🟥 झूठी सूचना देने वाले का भी होगा खुलासा
हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति का पता लगाने को भी कहा हैं, जिसने गौमांस की झूठी सूचना देकर भीड़ को भड़काया था। इसी सूचना के बाद छोई क्षेत्र में पिकअप चालक नासिर पर भीड़ ने हमला किया था और बैलपड़ाव चौकी के अंदर एक अन्य वाहन पर तोड़फोड़ की थी।
🟥 छोई और बैलपड़ाव के मामले एक साथ होंगे सुनवाई
अदालत ने कहा कि छोई और बैलपड़ाव दोनों मामलों को एक साथ सुना जायेगा। कोर्ट ने दोनों प्रकरणों की विस्तृत रिपोर्ट पुलिस से तलब की है।
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी न सिर्फ पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी बताती है कि भीड़तंत्र अब थानों की दीवारों के भीतर तक पहुंच चुका है। अदालत का यह रुख आने वाले दिनों में पुलिस प्रशासन की जवाबदेही तय करने में एक अहम मिसाल साबित हो सकता है।




 


 
																						
 
						 
					 
						 
					 
						 
					 
						 
					 
									 
																							


 
						 
						 
						