उत्तराखण्ड
रेफरल के जंजाल में फंसा मासूम: उत्तराखंड के स्वास्थ्य तंत्र की असलियत
रामनगर (नैनीताल) यह कहानी है उस नवजात शिशु की, जो राज्य की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं का शिकार हुआ। बीरौखाल से रामनगर अस्पताल के लिए रेफर किया गया यह नन्हा मासूम, 7 घंटे तक जीवन और मौत के बीच फंसा रहा, सिर्फ इसलिए क्योंकि एम्बुलेंस बरसाती नाले में तेज पानी के कारण आगे नहीं बढ़ पाई।
बच्चे की हालत लगातार बिगड़ रही थी, ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा था। फिर भी, 7 घंटे तक कोई मदद नहीं पहुंच सकी। आखिरकार, जब पानी का स्तर कम हुआ, तब एम्बुलेंस बच्चे को लेकर रामनगर के संयुक्त चिकित्सालय पहुंच सकी।
लेकिन, यह सिर्फ एक शुरुआत थी इस त्रासदी की। अस्पताल में पहुंचने के बाद भी, इस मासूम को फिर से रेफर किया गया।उसे संयुक्त चिकित्सालय रामनगर से सुशीला तिवारी हॉस्पिटल हल्द्वानी के लिए रेफर कर दिया,वजह, यहां पर नवजात शिशु के लिए आवश्यक वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं थे।
यह है प्रदेश के हेल्थ सिस्टम का असली चेहरा। जिस राज्य में एक स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत मुख्यमंत्री बनने की होड़ में शामिल हैं, वहां की स्वास्थ्य सेवाएं इतनी जर्जर हैं कि नवजात शिशुओं के लिए वेंटिलेटर तक नहीं।
प्राइवेट कंपनी के हवाले अस्पताल
यह घटना प्रदेश के हेल्थ सिस्टम की पोल खोलती है। सरकार ने जब खुद अपने इस अस्पताल को चलाने में नाकामयाबी पाई, तो इसे जनता के विरोध के बावजूद भी पीपीपी मोड पर एक प्राइवेट कंपनी के हवाले कर दिया। दावा किया गया कि इससे पहले से कई गुना बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलेंगी, लेकिन यह केवल कोरे वादे साबित हुए।
स्वास्थ्य मंत्री पर सवाल:
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत का नाम भावी मुख्यमंत्री के रूप में चर्चा में रहता है, लेकिन वे एक बेहतर मंत्री के रूप में खुद को साबित करने में असफल रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा से पहले उन्हें प्रदेश की बीमार स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए। जनता अब स्वास्थ्य तंत्र की इस दुर्दशा से तंग आ चुकी है और जिम्मेदारों से जवाबदेही की मांग कर रही है।
निष्कर्ष:
यह घटना प्रदेश के लचर स्वास्थ्य तंत्र और सरकार की असंवेदनशीलता का जीता-जागता उदाहरण है। यदि समय रहते स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर नहीं किया गया, तो ऐसी घटनाएं बार-बार दोहराई जाएंगी, और इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार पर होगी।