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उत्तराखण्ड

बुलडोजर बनाम संविधान! नैनीताल में आरोपी की पत्नी की याचिका पर हाईकोर्ट सख्त, पूछा– क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश आप पर लागू नहीं होता?

बुलडोजर बनाम संविधान! नैनीताल में आरोपी की पत्नी की याचिका पर हाईकोर्ट सख्त, पूछा– क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश आप पर लागू नहीं होता?

नैनीताल की शांत वादियों में अब न्याय और सत्ता के टकराव की गूंज सुनाई दे रही है। नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी मो. उस्मान की गिरफ्तारी के बाद अब उसकी पत्नी नगर पालिका के बुलडोजर नोटिस को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय पहुंची हैं। उन्होंने नगर पालिका नैनीताल द्वारा 1 मई 2025 को जारी उस नोटिस को चुनौती दी है, जिसमें तीन दिन के भीतर उनके घर को गिराने की चेतावनी दी गई थी।

“पीड़िता हूं, अपराधी नहीं” – कोर्ट में गुहार

याचिकाकर्ता, जो कि आरोपी की पत्नी हैं, ने अपने अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता के माध्यम से न्याय की गुहार लगाई। उन्होंने कोर्ट को बताया कि वह एक वरिष्ठ महिला नागरिक हैं और पिछले तीन दिनों से अपने ही घर में घुस नहीं पाई हैं। नगर पालिका ने जबरन भवन ध्वस्तीकरण का नोटिस घर के बाहर चस्पा कर दिया, जबकि उस वक्त घर में कोई मौजूद नहीं था। उनका आरोप है कि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सीधी अवहेलना है।

हाईकोर्ट का फटकारनामा – “क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश कानून नहीं है?”

मुख्य न्यायाधीश जे. नरेंद्र की खंडपीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कई तीखे सवाल उठाए। न्यायालय ने पूछा:

“क्या सर्वोच्च न्यायालय का आदेश कानून नहीं है? क्या वह आप पर लागू नहीं होता?”

कोर्ट ने गाड़ी पड़ाव क्षेत्र में दुकानों की तोड़फोड़ और पुलिस की निष्क्रियता का भी स्वतः संज्ञान लेते हुए पूछा:

“जब भीड़ दुकानों को तोड़ रही थी, तब पुलिस सिर्फ खड़ी क्यों रही? अगर पुलिस सतर्क होती तो क्या ये सब होता?”

इतना ही नहीं, कोर्ट ने उस घटना पर भी सवाल उठाया जब आरोपी मो. उस्मान को हल्द्वानी न्यायालय में पेश किया गया और वहां कुछ अधिवक्ताओं ने विरोध कर पैरवी करने वाले वकील को ही पीटने की कोशिश की। न्यायालय ने पूछा:

“कोई वकील कैसे किसी दूसरे वकील को केस की पैरवी करने से रोक सकता है?”

बुलडोजर पर सरकार की सफाई, लेकिन कोर्ट नहीं हुआ संतुष्ट

सरकारी अधिवक्ता ने जवाब में कहा कि भवन गिराने की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। नोटिस में केवल स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है और यह सिर्फ आरोपी को नहीं, कई लोगों को भेजा गया है।

लेकिन अदालत इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई। मुख्य न्यायाधीश ने सख्त लहजे में कहा:

“क्या ये सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं है? क्या आपके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया जाए?”

आदेश से पहले बुलाया गया एसएसपी और अधिशासी अधिकारी को

कोर्ट ने एसएसपी नैनीताल और अधिशासी अधिकारी से मामले में तत्काल निर्देश प्रस्तुत करने को कहा। यह भी पूछा गया कि क्या नोटिस जारी करते वक्त सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस को ध्यान में रखा गया था?

सवाल उठता है – क्या अब भी कानून की नहीं, भीड़ की चलती है?

इस पूरे घटनाक्रम ने एक गंभीर बहस को जन्म दे दिया है। क्या बुलडोजर अब न्याय के ऊपर है? क्या आरोपी की पत्नी को भीड़ के हवाले करना संवैधानिक है? क्या बिना सुनवाई के घर गिराने की धमकी देना लोकतंत्र है?


यह मामला सिर्फ एक आरोपी या उसके परिवार का नहीं, यह सवाल है संविधान, न्याय और शासन की मर्यादा का।

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