उत्तराखण्ड
पाटकोट में शराब की दुकान खोलने पर भड़की जनता, महिलाओं ने मोर्चा संभाला – प्रशासन को दी चेतावनी: फैसला वापस लो वरना होगा अनिश्चितकालीन धरना
पाटकोट में शराब की दुकान खोलने पर भड़की जनता, महिलाओं ने मोर्चा संभाला – प्रशासन को दी चेतावनी: फैसला वापस लो वरना होगा अनिश्चितकालीन धरना
रामनगर:
पाटकोट गाँव में शराब की दुकान खोलने की प्रशासनिक मंजूरी के खिलाफ आज, दिनांक 01 अप्रैल 2025 को एक जबरदस्त जनविरोध देखने को मिला। सुबह 9:30 बजे ग्राम पंचायत पाटकोट से उठी विरोध की लहर ने चौराहे तक पहुँचते-पहुँचते आक्रोश का तूफान खड़ा कर दिया। सैकड़ों ग्रामीणों—खासकर महिलाओं, छात्रों और समाजसेवियों—ने प्रशासन के “समाज-विरोधी” फैसले के खिलाफ तख्तियां और नारों के साथ सड़कों पर उतरकर अपना गुस्सा जताया।
“शराब की दुकानें बंद करो, हमारा समाज सुरक्षित रखो, नशा मुक्त क्षेत्र बनाओ” जैसे गगनभेदी नारों से पाटकोट की फिजा गूंज उठी। प्रदर्शनकारियों ने साफ शब्दों में चेताया कि यदि शराब की दुकान खोलने का फैसला तुरंत रद्द नहीं किया गया, तो वे अनिश्चितकालीन धरने पर बैठेंगे और यह आंदोलन और उग्र रूप लेगा।
प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों में कई प्रमुख चेहरे शामिल रहे:
- समाजसेवी श्रीमती बबिता बिष्ट,
- समाजसेवी नरेंद्र सिंह बिष्ट,
- ग्राम प्रधान मनमोहन पाठक,
- बीटीसी मेंबर भावना त्रिपाठी,
- बीजेपी के वरिष्ठ कार्यकर्ता महेंद्र सिंह मेहरा व गोपाल सिंह कुर्या,
- पूनम रावत, अंजलि बॉस, गीता देवी, गौरव जोशी, चंपा देवी, मोहनी देवी,
- नीतू देवी, रेनू तिवारी, गीता काश्मीरा, पूनम काश्मीरा, बचौली देवी,
- लक्ष्मण सिंह लुधियाल, कमल सिंह तड़ियाल, चंद्र तिवारी, कमल नेगी,
- प्रियांशु तिवारी, दीपा पपने, और सैकड़ों ग्रामवासी।
प्रदर्शन में शामिल लोगों ने दो टूक कहा कि शांतिप्रिय और संस्कारी गाँव में शराब का जहर नहीं फैलने देंगे। श्रीमती बबिता बिष्ट ने कहा, “हमारे बच्चे, हमारे स्कूल, हमारी संस्कृति—सब कुछ इस फैसले से खतरे में है। शराब की दुकान यहां नहीं चलेगी, चाहे इसके लिए हमें कितनी भी बड़ी लड़ाई क्यों न लड़नी पड़े।”
प्रदर्शनकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन ने यह फैसला बिना जन-सुनवाई और ग्रामवासियों की राय लिए गुपचुप तरीके से ले लिया, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का घोर अपमान है। स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि शराब की दुकान खुलने से न केवल अपराध बढ़ेंगे बल्कि महिलाएं और बच्चे भी असुरक्षित महसूस करेंगे।
प्रदर्शन के अंत में उपजिलाधिकारी को सौंपा गया ज्ञापन, जिसमें निम्नलिखित मांगें प्रमुख थीं:
- शराब की दुकान खोलने का फैसला तत्काल रद्द किया जाए।
- भविष्य में इस तरह के निर्णयों से पहले ग्रामसभा या सार्वजनिक जन-सुनवाई अनिवार्य की जाए।
पाटकोट की जनता ने चेतावनी दी है:
“यदि हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो ये चूल्हे नहीं जलेंगे, पर धरना जरूर चलेगा… और वो भी तब तक जब तक फैसला वापस नहीं होता!”
यह आंदोलन अब केवल शराब की दुकान का विरोध नहीं, बल्कि गांव के आत्म-सम्मान और संस्कृति की रक्षा की लड़ाई बन गया है।




