उत्तराखण्ड
सांप्रदायिक तनाव की आग बुझाने को पुलिस ने निकाला फ्लैग मार्च, लेकिन सवालों के घेरे में कानून की साख!
सांप्रदायिक तनाव की आग बुझाने को पुलिस ने निकाला फ्लैग मार्च, लेकिन सवालों के घेरे में कानून की साख!
एटम बम | नैनीताल
एक तरफ नैनीताल पुलिस फ्लैग मार्च निकालकर आमजन में सुरक्षा और कानून व्यवस्था का भरोसा जताने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ शहर में हाल ही में घटी दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
दरअसल, नैनीताल की शांत वादियों में उस वक्त बवाल मच गया जब एक मासूम बालिका के साथ दुष्कर्म की शर्मनाक वारदात सामने आई। आरोपी उस्मान को पुलिस ने फौरन गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने पूरे मामले को एक अलग ही दिशा दे दी। आरोपी की पहचान के नाम पर शहर में अराजकता फैल गई। कुछ उन्मादी भीड़ ने मुस्लिम समुदाय की दुकानों में तोड़फोड़ की, लोगों के साथ मारपीट की और सांप्रदायिक तनाव की चिंगारी को हवा देने की कोशिश की।
ऐसे में आज SSP प्रह्लाद नारायण मीणा के नेतृत्व में PAC, SSB व अन्य पुलिस टीमों ने शहर की सड़कों पर फ्लैग मार्च कर डाला। मकसद साफ था—डरे हुए आम लोगों में कानून और पुलिस का भरोसा फिर से कायम करना। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब मासूम के साथ दरिंदगी हुई, तब पुलिस क्या कर रही थी? और जब जवाब में प्रतिशोध की आग भड़की, तब असल दोषी के बजाय पूरे समुदाय को निशाने पर क्यों लिया गया?
फ्लैग मार्च खड़ी बाजार, बड़ा बाजार, चीनाखान, रिक्शा स्टैंड, माल रोड और घोड़ा स्टैंड जैसे प्रमुख इलाकों से होकर गुजरा। SSP मीणा ने सख्त लहजे में कहा कि कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी। लेकिन जनमानस जानना चाहता है—क्या पुलिस वाकई अराजक तत्वों के खिलाफ समान रूप से कठोर है या कार्रवाई का पैमाना धर्म देखकर तय होता है?
नैनीताल जैसे संवेदनशील पर्यटन स्थल पर ऐसे सांप्रदायिक बवाल की आग अगर और फैली, तो इसका असर न सिर्फ स्थानीय अमन-चैन पर पड़ेगा, बल्कि शहर की छवि और पर्यटन व्यापार पर भी भारी पड़ेगा। सवाल यह भी है कि क्या फ्लैग मार्च जैसी औपचारिक कार्रवाइयों से हालात सुधरेंगे, या पुलिस को अब ज़मीनी स्तर पर कड़े और निष्पक्ष फैसले लेने की ज़रूरत है?
कानून की लाठी सिर्फ उन पर नहीं चलनी चाहिए जो कमज़ोर हैं, बल्कि उन पर भी चलनी चाहिए जो इस लाठी के पीछे छुपकर समाज में ज़हर घोल रहे हैं।
अब देखना होगा कि पुलिस की ये सख्ती महज़ दिखावा साबित होती है या फिर वाकई नैनीताल की फिजा में एक बार फिर अमन की ठंडी हवा बहती है।




