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उत्तराखण्ड

बस हादसे के बाद बढ़ा जनाक्रोश, मुख्यमंत्री और अधिकारियों को झेलनी पड़ी जनता की नाराजगी

अल्मोड़ा बस हादसे के बाद बढ़ा जनाक्रोश, मुख्यमंत्री और अधिकारियों को झेलनी पड़ी जनता की नाराजगी

उत्तराखंड:अल्मोड़ा के मरचूला क्षेत्र में कुपी गाँव के पास हुए भीषण बस हादसे ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। हादसे में अब तक 36 लोगों की जान जा चुकी है। घटना के बाद सरकार की ओर से मौके पर पहुंचे मुख्यमंत्री के सचिव और कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत को स्थानीय लोगों और पीड़ित परिजनों के आक्रोश का सामना करना पड़ा।

दीपक रावत पर गुस्सा बरपा

जब कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत हादसे के स्थल पर पहुँचे, तो पीड़ित परिवारों और उनके रिश्तेदारों ने उनसे कड़े सवाल पूछे। रावत ने बताया कि हादसे के बाद आरटीओ अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया है और मृतकों के परिजनों के लिए चार-चार लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की गई है। लेकिन इस पर लोगों का गुस्सा और भड़क गया। लोगों ने कहा, “मुआवजे से क्या होगा? अपना मुआवजा अपने पास रखो।” उन्होंने धुमाकोट बस हादसे की याद दिलाते हुए कहा कि वहाँ भी मुआवजा घोषित हुआ था, जो अब तक कई पीड़ितों तक नहीं पहुंचा है। पहाड़ की सड़कों पर बने गड्ढों को लेकर भी लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर की।

मुख्यमंत्री का दौरा रद्द, रामनगर में ही घायलों से की मुलाकात

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हादसे के बाद मरचूला में पहुँचने की योजना थी, और उनके लिए हैलीपेड भी तैयार किया गया था। लेकिन स्थानीय लोगों के गुस्से को देखते हुए मुख्यमंत्री ने हादसे की जगह पर न जाकर रामनगर के संयुक्त चिकित्सालय में घायलों से मिलने का फैसला किया। रामनगर में भी उनकी मुलाकात के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे, ताकि उग्र भीड़ को नियंत्रित किया जा सके। अस्पताल में मुख्यमंत्री के आगमन पर स्थानीय पत्रकारों को अंदर जाने से रोका गया, जिससे वे नाराज हो गए। केवल ANI का कैमरामैन अस्पताल के अंदर मुख्यमंत्री के साथ रहा, जिससे पत्रकारों के बीच असंतोष फैल गया।

स्थानीय नेताओं को भी झेलनी पड़ी फटकार

मुख्यमंत्री से पहले कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा और लैंसडाउन के विधायक दिलीप रावत घायलों का हालचाल जानने अस्पताल पहुँचे थे। यहाँ भी लोगों ने स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को लेकर अपनी नाराजगी जताई। उनका कहना था कि अस्पताल केवल रेफर सेंटर बनकर रह गया है और सही इलाज की व्यवस्था नहीं है। लोगों का यह भी सवाल था कि अस्पताल का पीपीपी मोड का अनुबंध अक्टूबर में समाप्त हो चुका था, फिर भी इसे तीन महीने के लिए क्यों बढ़ा दिया गया। लोगों की यह मांग थी कि अस्पताल को पीपीपी मोड से हटाकर सरकार खुद बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराए।

मुख्यमंत्री के खिलाफ नारेबाजी

मुख्यमंत्री के अस्पताल पहुंचने पर बाहर लोगों ने उनके खिलाफ नारेबाजी की। जनता का आक्रोश सरकार की ओर से किये गए व्यवस्थाओं की कमी और हादसे के बाद के इंतजामों को लेकर था। मुख्यमंत्री बिना स्थानीय पत्रकारों और जनता से संवाद किए तेज़ी से अस्पताल पहुंचे और उतनी ही तेज़ी से वहां से चले गए, जिससे लोगों में और नाराजगी बढ़ गई।

 

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