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उत्तराखण्ड

“सरकार के मुनाफे की शराब नीति पर जनता का तमाचा”

उत्तराखंड में शराब विरोधी आंदोलन की आंशिक जीत: महिलाओं के संघर्ष के आगे झुकी सरकार

देहरादून।
उत्तराखंड में लंबे समय से शराब विरोधी आंदोलन की अगुवाई कर रहीं महिलाओं को एक आंशिक सफलता मिली है। राज्य सरकार ने उन शराब की दुकानों को बंद करने का आदेश जारी किया है, जिनका स्थानीय महिलाओं ने खुलकर विरोध किया था। महिला एकता मंच ने इसे “उत्तराखंड की महिला शक्ति की जीत” करार दिया है। हालांकि आंदोलनकारी इसे सरकार की “आधी अधूरी कार्रवाई” बताते हुए निरंतर संघर्ष की बात कर रही हैं।

14 मई को आबकारी आयुक्त द्वारा जारी आदेश में साफ किया गया कि केवल उन्हीं दुकानों को बंद किया जाएगा जिनका विरोध हुआ है, जबकि वे नई दुकानें जिनके खिलाफ विरोध दर्ज नहीं हुआ, वे चालू रहेंगी। महिला संगठनों का कहना है कि यह जनता के साथ फिर एक छलावा है और सरकार केवल प्रतीकात्मक निर्णय लेकर असल मुद्दों से बच रही है।

“शराब से सबसे ज़्यादा महिलाएं होती हैं पीड़ित”

महिला एकता मंच ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि शराब के कारण सबसे अधिक पीड़ित महिलाएं होती हैं। नशे की लत के चलते परिवारों में हिंसा बढ़ती है, घरेलू शांति नष्ट होती है और बच्चों की शिक्षा व परिवार की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह गांव-गांव में शराब बेचकर जनता की जेब पर डाका डाल रही है। एक बोतल पर 500 प्रतिशत टैक्स वसूलकर सरकार और शराब माफिया जनता का शोषण कर रहे हैं।

सरकारी नीतियों पर उठे सवाल

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि शराब से जुड़े अपराधों, सड़क हादसों और घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी का सीधा संबंध है, लेकिन सरकार आर्थिक लाभ के लालच में समाज की कीमत पर व्यापार चला रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि देश में 40% सड़क हादसे शराब के कारण होते हैं।

नशा नहीं, इलाज दो अभियान रहेगा जारी

महिलाओं ने चेताया है कि ये सिर्फ शुरुआत है और “नशा नहीं, इलाज दो” अभियान अब और तेज किया जाएगा। उनका कहना है कि अब वक्त आ गया है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सुरक्षा, रोजगार और नशा मुक्ति जैसे मुद्दों को लेकर महिलाएं संगठित होकर पूरे उत्तराखंड में एक निर्णायक आंदोलन खड़ा करें।

महिला एकता मंच ने प्रदेशवासियों से किया आह्वान

महिला एकता मंच ने सभी नागरिकों से अपील की है कि वे इस अभियान में जुड़ें और एक ऐसे उत्तराखंड की नींव रखें जो नशा मुक्त, सुरक्षित और विकासशील हो। उनका कहना है कि अगर सरकार वास्तव में जनहित में काम करना चाहती है तो उसे राज्यभर में शराब की सभी दुकानों को बंद कर जनकल्याणकारी विकल्पों की ओर बढ़ना चाहिए।

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