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उत्तराखण्ड

रामनगर: मदन जोशी की तहरीर पर सवाल, क्या ‘नफरत की फसल’ उगाने की हो रही है कोशिश?

रामनगर (नैनीताल) – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने विरोध प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का दावा कर बीजेपी के नगर मंडल अध्यक्ष मदन जोशी ने चांद, फरमान, और जावेद के खिलाफ पुलिस को तहरीर दी है। लेकिन, यह तहरीर सवालों के घेरे में आ गई है। आखिरकार, जब मुख्यमंत्री के सामने नारेबाजी करने वाले और भी थे, तो सिर्फ इन तीन नामों का ही चयन क्यों किया गया?

बीजेपी नगर मंडल अध्यक्ष मदन जोशी की इस तहरीर पर कटाक्ष करते हुए स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक इसे एक ‘राजनीतिक चाल’ बता रहे हैं। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर प्रदर्शनकारियों के वीडियो फुटेज साफ दिखाते हैं कि मुख्यमंत्री के सामने नारेबाजी करने वाले और भी लोग थे। फिर सवाल यह उठता है कि मदन जोशी ने सभी के खिलाफ कार्रवाई की बात क्यों नहीं की? क्या इसके पीछे नगर निकाय चुनाव में संभावित राजनीतिक नुकसान का डर था? या फिर यह केवल उन लोगों को निशाना बनाकर की गई कार्रवाई है जिनसे ‘नफरत की फसल’ उगाई जा सके?

इस घटनाक्रम से एक और सवाल उठता है—क्या मदन जोशी की ‘हिम्मत’ केवल तीन नामों तक ही सीमित थी, जबकि मुख्यमंत्री के सामने विरोध करने वाले तो और भी थे? विधायक दीवान सिंह बिष्ट के साथ मिलकर मदन जोशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन प्रदर्शनकारियों की निंदा की थी जिन्होंने मुख्यमंत्री और उनके खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया। लेकिन जब तहरीर देने का समय आया, तो नामों का चयन खास ढंग से किया गया।

निकाय चुनाव के ठीक पहले इस तरह की तहरीर देना कई लोगों के लिए एक ‘चालाकी भरा कदम’ लग रहा है। मदन जोशी और विधायक बिष्ट के इस कदम से यह संदेश जाता है कि राजनीतिक समीकरणों को साधने के लिए विशेष समुदायों को निशाना बनाना आसान रास्ता बन गया है। इस तहरीर में जिन नामों का जिक्र किया गया है, वे एक खास तरह के राजनीतिक माहौल को जन्म देने की कोशिश कर रहे हैं, जो नफरत और विभाजन की राजनीति की ओर इशारा करता है।

वहीं, स्थानीय लोगों का मानना है कि नारेबाजी और विरोध करने का अधिकार लोकतंत्र की एक बुनियादी विशेषता है। लेकिन जब इस अधिकार का सामना करने के बजाय उसे दबाने की कोशिश की जाती है, तो सवाल उठना लाजमी है। कई लोगों का यह भी कहना है कि यदि प्रदर्शनकारियों को मुख्यमंत्री से संवाद करने का अवसर दिया गया होता, तो शायद इस तरह के हालात नहीं बनते। लेकिन स्थानीय नेताओं की आपसी गुटबाजी ने इस विवाद को और हवा दे दी है।

मदन जोशी और विधायक दीवान सिंह बिष्ट द्वारा संयुक्त चिकित्सालय को पीपीपी मोड में संचालित करने वाली कंपनी का बचाव भी चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल यह है कि जब जनता की नाराजगी इस मॉडल को लेकर है, तो फिर सरकार के प्रतिनिधि क्यों इस कंपनी के बचाव में उतर रहे हैं?

इस पूरे घटनाक्रम ने रामनगर की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। मदन जोशी की तहरीर और उसके पीछे के निहितार्थों पर जनता की नजरें टिकी हुई हैं। अब देखना यह होगा कि यह मामला किस दिशा में आगे बढ़ता है और क्या वाकई इससे किसी को न्याय मिलता है, या फिर यह केवल राजनीतिक समीकरणों की साधना तक ही सीमित रह जाएगा।

 

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