उत्तराखण्ड
भवानीगंज की रामलीला: 52 वर्षों से रामभक्ति का अखंड प्रवाह
भवानीगंज की रामलीला: 52 वर्षों से रामभक्ति का अखंड प्रवाह
रामनगर।
भवानीगंज की रामलीला—यह सिर्फ एक मंचन नहीं, बल्कि आधी सदी से अधिक समय से जीवित एक परंपरा है। आदर्श रामलीला समिति के तत्वावधान में आयोजित यह भव्य आयोजन मानसून के हर दौर में प्रभु श्रीराम के आदर्शों को जीवंत करता है। 52 वर्षों से निरंतर चल रही इस रामलीला की पहचान रामनगरी अयोध्या की भांति पौराणिक और लोक आस्था से ओतप्रोत है।
कलाकारों का सजीव अभिनय, संवादों का गूंजता स्वर और मंच पर जीवंत होती पौराणिक कथाएँ दर्शकों को उस युग में ले जाती हैं, जब सत्य और धर्म की स्थापना के लिए प्रभु श्रीराम ने असत्य और अधर्म का विनाश किया था। टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया के आधुनिक दौर में भी भवानीगंज की रामलीला अपनी विशिष्टता बनाए हुए है। दर्शकों को जोड़े रखने के लिए रामकथा के प्रसंगों में हास्य, फिल्मी गीत और आधुनिक संवादों का स्पर्श भी किया जाता है, जो इस लीला को और भी रोचक बना देता है।
बीती रात मंचन में श्रीराम-सुग्रीव मित्रता, बालि वध, सुग्रीव राज्याभिषेक, हनुमान द्वारा सीता माता की खोज और हनुमान जी का लंका प्रस्थान जैसे प्रसंगों का प्रदर्शन हुआ।
- श्रीराम की भूमिका में किशोर कश्यप ने भावपूर्ण अभिनय किया।
- माता सीता का रूप मनोज कुमार ने निभाया।
- लक्ष्मण की गहनता मयंक रौत ने दिखाई।
- हनुमान के जोश और भक्ति का रूप किशोर चंद्रा ने साकार किया।
- सुग्रीव की भूमिका ओमप्रकाश ने और बाली की वीरता रामकिशोर अग्रवाल ने जीवंत की।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व दर्जा मंत्री पुष्कर दुर्गापाल ने दीप प्रज्ज्वलन कर मंचन का शुभारंभ किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा—
“यह भगवान राम का मंच है, राजनीति का नहीं। इस मंच से सिर्फ प्रभु श्रीराम की ही बातें होनी चाहिए। राम सबके हैं, वे सबके हृदय में वास करते हैं। यह रामलीला हमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्श, सीता माता के त्याग, लक्ष्मण की भाईचारा भावना और रावण के अहंकार के दुष्परिणामों की सीख देती है।”
उन्होंने आदर्श रामलीला समिति को 52 वर्षों से सतत इस पुण्य कार्य के लिए बधाई देते हुए कहा कि यह आयोजन समाज को धर्म, आस्था और आदर्शों की ओर मार्गदर्शन देने वाला है।
भवानीगंज की यह रामलीला न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह वह दीपशिखा है जो हर वर्ष जनमानस को अंधकार से प्रकाश, असत्य से सत्य और अधर्म से धर्म की ओर ले जाती है। यही इसकी असली पहचान और अमर परंपरा है।







