उत्तराखण्ड
रामनगर निकाय चुनाव: बागी भाव न दें, सांसद बेचारे क्या करें?
रामनगर (नैनीताल)। भाजपा के ‘डैमेज कंट्रोल’ अभियान को बड़ा झटका तब लगा जब पूर्व पालिकाध्यक्ष और बागी उम्मीदवार भगीरथ लाल चौधरी ने सांसद अनिल बलूनी को ‘भाव’ देना तक जरूरी नहीं समझा। निकाय चुनाव में पार्टी के अंदरूनी विरोध को शांत कराने आए सांसद बलूनी की चौधरी से मुलाकात की कोशिशें नाकाम रहीं।
सांसद की ‘मनाने यात्रा’ और चौधरी का ‘नो रिस्पॉन्स’
गणेश रावत, भूपेंद्र खाती और भावना भट्ट जैसे नाराज नेताओं को मना चुके सांसद बलूनी का अगला पड़ाव था भगीरथ लाल चौधरी। मगर चौधरी साहब ने सांसद के फोन तक का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। पार्टी की उम्मीदों के लिए यह किसी करारे थप्पड़ से कम नहीं था।
सांसद बलूनी, जो हमेशा अपनी रणनीतिक सूझबूझ के लिए चर्चित रहे हैं, इस बार चौधरी के ‘नो रिस्पॉन्स’ से हैरान रह गए। चौधरी साहब से मुलाकात की तमाम कोशिशें नाकाम हो गईं। अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि नामांकन वापसी के दिन चौधरी क्या फैसला करेंगे – भाजपा के साथ लौटेंगे या अपनी चुनावी लड़ाई जारी रखेंगे?
चौधरी का ‘बागी अंदाज’ और भाजपा की ‘बेचैनी’
भगीरथ लाल चौधरी के बागी तेवर भाजपा के लिए सिरदर्द बन गए हैं। जहां सांसद बलूनी पार्टी की छवि बचाने और विरोध शांत करने के मिशन पर जुटे हैं, वहीं चौधरी का यह रुख उनकी मेहनत पर पानी फेरता नजर आ रहा है।
सांसद बलूनी का डैमेज कंट्रोल अभियान अब “नो रिस्पॉन्स” चैलेंज में बदल गया है। फोन न उठाना, मिलने से इनकार करना और बागी रुख दिखाना – भगीरथ लाल चौधरी ने अपनी मर्जी से भाजपा की राह में कांटे बिछा दिए हैं। सांसद बलूनी खुद को बेहद सख्त बता रहे हैं, संकेत दें रहे हैं कि बागी होकर पार्टी से बाहर जाने वालों की फिर वापसी नही हो पायेगी!
भाजपा कार्यकर्ता अब यह सोच रहे होंगे कि “डैमेज कंट्रोल का कंट्रोल ही आउट हो गया!” देखते हैं, नामांकन वापसी के दिन चौधरी साहब क्या फैसला करते हैं। मगर इतना तय है कि रामनगर निकाय चुनाव, भाजपा के लिए ‘प्रश्न-पत्र’ बन चुका है – और उत्तर कौन देगा, यह अभी अनिश्चित है।
तो, चौधरी जी का जवाब आने तक, भाजपा के नेता इंतजार के अलावा कुछ और कर भी सकते हैं क्या?