उत्तराखण्ड
रामनगर कोतवाली को मिला नया “कमांडर” — साढ़े तीन साल से कुर्सी पर जमे सैनी हटे तो अब आई नई “खास कृपा” की बहार!
रामनगर कोतवाली को मिला नया “कमांडर” — साढ़े तीन साल से कुर्सी पर जमे सैनी हटे तो अब आई नई “खास कृपा” की बहार!
रामनगर।
लगता है, रामनगर कोतवाली अब “थाने” से ज़्यादा “तख़्त” बन चुकी है — जहां इंस्पेक्टर नहीं, “राजा” बैठते हैं और आदेश सिर्फ़ ऊपर से आते हैं, वो भी तब जब हाईकोर्ट का डंडा चल जाए!
पिछले दो हफ़्तों से बिना कोतवाल के चल रही रामनगर कोतवाली को आखिरकार नया कोतवाल मिल गया है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती — असली ड्रामा तो उस कुर्सी से हटाए गए “हमेशा बने रहने वाले कोतवाल” अरुण कुमार सैनी के इर्द-गिर्द है।
जी हां, वही अरुण कुमार सैनी — जिसे SSP अपने विवेक से हटाने का साहस नहीं कर सके, वे वहीं के वहीं डटे रहे। नियम कहता है — तीन साल बाद ट्रांसफर अनिवार्य है, पर सैनी साहब पर ये नियम भी सामर्थ्यहीन साबित हुआ। पंकज भट्ट से लेकर प्रहलाद मीणा तक ने जिले के इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, और कांस्टेबल तक के तबादले घुमा-फिरा दिए, पर “रामनगर कोतवाल” का ताज सैनी के सिर से नहीं उतरा।
कहा जा सकता है कि सैनी की कुर्सी सिर्फ़ पुलिस विभाग की नहीं, बल्कि किस्मत और कृपा की भी कहानी है!
हाईकोर्ट का डंडा और ‘शक्तिमान सैनी’
रिज़ॉर्ट विवाद में एक पक्ष को “कब्ज़ा दिलाने के प्रयास” की शिकायत जब हाईकोर्ट तक पहुंची, तो खुद मुख्य न्यायाधीश को दखल देना पड़ा। आदेश आया – “सैनी को हटाओ।”
लेकिन हटाने से पहले भी कोर्ट को ये देखना पड़ा कि आखिर एक इंस्पेक्टर इतना अमर कैसे हो गया कि डीजीपी के आदेश भी उस पर असर नहीं करते?
पहले भी टाइगर कैंप रिजॉर्ट केस में हाईकोर्ट ने सख़्त टिप्पणी की थी और तब तत्कालीन डीजीपी अभिनव कुमार ने सैनी को लाइन हाजिर करने के आदेश दिए थे। पर क्या हुआ? तीन दिन भी नहीं बीते और डीआईजी योगेंद्र सिंह रावत ने अपने ही आदेश पलटकर सैनी को वापस रामनगर कोतवाली भेज दिया!
हाईकोर्ट के जज ने तब भी कहा था —
“जिसे हटाया गया, उसे चंद दिनों में फिर से वहीं पोस्टिंग कैसे मिल गई?”
पर सैनी साहब तो जैसे “शक्तिमान” मोड में थे — न टिप्पणी का असर, न आदेश का डर।
जब हाईकोर्ट ने DGP-SSP को दी अवमानना की चेतावनी
रिज़ॉर्ट विवाद की नई कड़ी में हाईकोर्ट को फिर से दखल देना पड़ा। और इस बार मुख्य न्यायाधीश ने साफ कहा — अगर सैनी को नहीं हटाया गया तो DGP और SSP दोनों पर अवमानना का नोटिस जारी किया जाएगा।
बस, फिर क्या था — रामनगर की कुर्सी आखिर हिली।
लेकिन हटाने की कृपा भी “मेहरबानी भरी” रही — सैनी साहब को लाइन या दूसरे जिला नहीं भेजा गया, बल्कि रामनगर के नज़दीक ही कालाढूंगी कोतवाली का चार्ज दे दिया गया।
यानी सजा भी, सुविधा भी!
अब आई नई नियुक्ति — पर ये ‘खास मिशन’ किसका?
अरुण कुमार सैनी के हटने के बाद दो हफ्ते तक रामनगर कोतवाली “कुर्सीविहीन” रही।
अब जाकर सुशील कुमार का नाम घोषित हुआ है — जो हाल ही में सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर बने हैं।
जिले में आए ही थे कि सीधे बनभूलपुरा जैसी संवेदनशील कोतवाली में तैनात हो गए। और अब जिले की सबसे मलाईदार कोतवाली — रामनगर का चार्ज मिल गया।
कई वरिष्ठ इंस्पेक्टर लाइन में खड़े थे, लेकिन अचानक एक नए प्रोन्नत इंस्पेक्टर को “मिशन रामनगर” के लिए भेजा जाना सवाल खड़े करता है।
क्या इसमें कोई “खास भरोसा” है?
या फिर ये सिर्फ़ पुरानी कृपा का नया चेहरा है?
रामनगर कोतवाली: जहां कुर्सी नहीं, कृपा चलती है!
रामनगर कोतवाली अब “थाने” से ज़्यादा “थ्रोन” लगने लगी है —
जहां कोई हटता नहीं, और अगर हटता भी है तो पास ही शिफ्ट होकर बैठ जाता है।
कानून का राज चाहे कुछ और कहे, लेकिन यहां तो “कृपा का शासन” चलता दिखाई देता है।
कह सकते हैं —
“रामनगर कोतवाली में कुर्सी नहीं बदलती, बस ‘कृपा के ठिकाने’ बदलते हैं।”
लेखक: खुशाल रावत
संपादक – एटम बम, रामनगर (नैनीताल), उत्तराखंड




