उत्तराखण्ड
लद्दाख आंदोलन के समर्थन में धरना, समाजवादी लोक मंच और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने दिया समर्थन
रामनगर (नैनीताल): समाजवादी लोक मंच और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी (उपपा) ने लद्दाख भवन पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक और लद्दाख के संघर्षशील साथियों के समर्थन में धरना दिया। उन्होंने लद्दाख के आंदोलनकारियों के 4 सूत्रीय मांगों का लिखित समर्थन करते हुए सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की।
धरना स्थल पर सरकार द्वारा बैरिकेडिंग कर दी गई, जिससे उपपा नेता प्रभात ध्यानी, पूजा, और सौरभ को धरना स्थल पर जाने से जबरन रोक दिया गया। बावजूद इसके, समाजवादी लोक मंच और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के नेताओं ने सरकार की इस कार्रवाई को लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया और अपने समर्थन को ज़ाहिर किया।
सोनम वांगचुक की पर्यावरणीय चिंता:
भूख हड़ताल पर बैठे सोनम वांगचुक ने उत्तराखंड और देश के पर्यावरणीय विनाश पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने सभी से आह्वान किया कि इस पर्यावरणीय संकट को रोकने के लिए सामूहिक रूप से कदम उठाए जाएं। उन्होंने यह वादा किया कि स्थिति सामान्य होने पर वह उत्तराखंड आएंगे और इस आंदोलन को और मजबूती से आगे बढ़ाएंगे।
लद्दाख आंदोलन की मांगें:
लद्दाख आंदोलन के समन्वयक मेंहदी शाह ने कहा कि लद्दाख की आबादी करीब 3.30 लाख है, जिसमें 95% जनजातीय समुदाय से आते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार बड़े प्रोजेक्ट लाकर लद्दाख के पर्यावरण को खराब करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने मांग की कि संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए, ताकि वहां की जनजातीय आबादी और पर्यावरण की सुरक्षा हो सके। उन्होंने संसद में लद्दाख से दो सांसद चुने जाने का अधिकार देने और क्षेत्र में बेरोजगारी दूर करने की मांग भी उठाई।
समाजवादी लोक मंच का आरोप:
समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीष कुमार ने इसे लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन बताते हुए कहा, “मोदी सरकार तानाशाही पर उतर चुकी है। भूख हड़ताल पर बैठे लोगों को जनता से काटकर लद्दाख भवन में कैद कर लिया गया है। यह लोकतंत्र का सीधा-सीधा उल्लंघन है।”
लद्दाख संघर्ष के समर्थन में संदेश:
धरने में समर्थन पत्र के माध्यम से यह भी कहा गया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसे लद्दाख के पर्यावरण, जनजातीय समाज और जनजीवन को बचाने के संघर्ष का समर्थन करते हैं। उन्होंने सोनम वांगचुक और उनके साथियों के 2 अक्टूबर को दिल्ली पहुंचने और गांधी समाधि पर उपवास के अधिकार को नकारने और रास्ते में गिरफ्तारी को निंदनीय बताया। समर्थन पत्र में कहा गया कि लद्दाख के संघर्ष को दबाने की यह कोशिश भारत सरकार द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है।
धरने में यह भी कहा गया कि लद्दाख का संघर्ष सिर्फ एक क्षेत्र विशेष का संघर्ष नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने का एक बड़ा आंदोलन है, जो समूची मानवता को पूंजीवाद से बचाने की लड़ाई तक जाता है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और देश के अन्य पर्वतीय राज्यों में हो रहे पर्यावरण विनाश पर भी चिंता व्यक्त की गई और इसे रोकने की मांग की गई।
समर्थन और संघर्ष की कामना:
धरने के अंत में, प्रभात ध्यानी, पवन, सीमा, चंचल, मंजू, और पूजा सहित अन्य नेताओं ने सोनम वांगचुक और उनके साथियों के संघर्ष की सफलता की कामना की और उनके मजबूत इरादों की सराहना की।
धरने के माध्यम से लद्दाख के आंदोलनकारियों को समर्थन देते हुए उनके संघर्ष को व्यापक राष्ट्रीय मुद्दा बताया गया, जो न केवल लद्दाख बल्कि पूरे देश के पर्यावरण और जनजीवन को सुरक्षित रखने का प्रयास है।