उत्तराखण्ड
जुआ खेलने के लिए ‘झाड़ियों’ का चयन, मगर किस्मत नहीं दे पाई साथ!
जुआ खेलने के लिए ‘झाड़ियों’ का चयन, मगर किस्मत नहीं दे पाई साथ!
पीरूमदारा से ‘ताश के जमींदोज़ खिलाड़ी’ गिरफ्तार – पत्तों पर भरोसा किया, किस्मत ने धोखा दे दिया!
रामनगर – कहते हैं “दांव लगाने से किस्मत नहीं बदलती, कभी-कभी थाने का रास्ता ज़रूर बदल जाता है।” ऐसा ही कुछ हुआ पीरूमदारा क्षेत्र के चार शौक़ीनों के साथ, जिन्होंने ताश के पत्तों को तक़दीर का नक्शा समझ लिया और झाड़ियों को ‘कैसीनो’ बना बैठे।
हिम्मतपुर ब्लाक की रेलवे क्रॉसिंग के पास कुछ समझदार दिमागों ने झाड़ियों में बैठकर “ऑपन गड्डी, सीलबंद गड्डी और ढेर सारे नोटों” के साथ ताश की ऐसी महफ़िल जमाई कि लग रहा था मानो लास वेगास की शाखा यहीं खुल गई हो। लेकिन अफ़सोस, ये “ताश के टाइगर” किस्मत की चाल से मात खा बैठे।
गिरफ्त में आए जुआ प्रेमी:
- सलमान, हुकम सिंह, तारा दत्त और उस्मान – चारों अलग-अलग गांव के ताश-पटेल, मगर एक ही अंजाम के शिकार!
बरामद ‘समग्री’:
- एक खुली ताश की गड्डी (क्योंकि खेल तो चालू था ही)
- एक सीलबंद ताश की गड्डी (शायद फाइनल राउंड के लिए)
- ₹24,270 नकद (लगता है इन्वेस्टमेंट अच्छा था, रिटर्न पुलिस ले गई)
स्थान: झाड़ियों का चुनाव बताता है कि ये खिलाड़ी न केवल जुआ खेलने में माहिर थे, बल्कि ‘लोकेशन मैनेजमेंट’ में भी अव्वल थे। मगर अफ़सोस, पत्तों का खेल पुलिस की चाल से भारी नहीं पड़ा।
सवाल वही पुराना है –
क्या ये झाड़ियों के भीतर जमी ताश की गड्डियां हमारी व्यवस्था पर तंज नहीं हैं? क्या ये साबित नहीं करता कि अब जुआ खेलने के लिए चौपड़ नहीं, घास-फूस भी काफी है, बशर्ते पकड़ में न आएं!
संयोग देखिए –
इनकी किस्मत तो वहीं धराशायी हो गई, जहां उन्होंने किस्मत आजमाने की सोची थी।
जनता के लिए संदेश:
झाड़ियों में ताश की गड्डियां छुप सकती हैं, लेकिन ‘किस्मत’ नहीं। अगली बार खेलने से पहले देख लें – ताश बिछाने से पहले कौन चाल बिछा चुका है!
📌 नोट: जुआ एक अपराध है, और झाड़ियों में बैठकर खेलना कोई ‘स्मार्ट प्ले’ नहीं – सीधा ‘गिरफ्तारी वाला गेम ओवर’ होता है।
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