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चौखुटिया आंदोलन के दबाव में आखिरकार सरकार झुकी — अस्पताल उन्नयन का शासनादेश जारी, स्वास्थ्य सुविधाओं की समीक्षा करेंगे सीएम

चौखुटिया आंदोलन के दबाव में आखिरकार सरकार झुकी — अस्पताल उन्नयन का शासनादेश जारी, स्वास्थ्य सुविधाओं की समीक्षा करेंगे सीएम

अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया क्षेत्र में लंबे समय से चल रहे स्वास्थ्य आंदोलन का असर आखिरकार दिखने लगा है। चौखुटिया की जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों की मांगों को सरकार ने मान लिया है। आंदोलनकारियों के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की, जिसके बाद चौखुटिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के उन्नयन का शासनादेश जारी कर दिया गया है।

मुख्यमंत्री ने अस्पताल की क्षमता 30 बेड से बढ़ाकर 50 बेड करने और अन्य आवश्यक सुविधाएं चरणबद्ध तरीके से उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। आंदोलन के दबाव में आई सरकार अब स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक भी करेगी, और खुद मुख्यमंत्री जल्द चौखुटिया अस्पताल का निरीक्षण कर वहां की व्यवस्थाओं का जायजा लेंगे।

🏥 आंदोलन के पीछे की पीड़ा – डॉक्टर नहीं, मशीनें बंद, मरीज बेहाल

चौखुटिया क्षेत्र के लोग वर्षों से खराब स्वास्थ्य सेवाओं से जूझ रहे हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं, न विशेषज्ञ। एक्स-रे मशीन जैसी बेसिक सुविधा भी लंबे समय से ठप थी। गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए अल्मोड़ा या रामनगर तक भेजा जाता रहा। यही कारण रहा कि स्थानीय लोगों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर आंदोलन का रास्ता चुना।

आंदोलनकारियों का कहना है कि “शासनादेश तो अब जारी हुआ है, लेकिन असली सवाल सेवा पहुंचने का है। जब तक डॉक्टरों की नियुक्ति, उपकरणों की कार्यशीलता और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक चौखुटिया की जनता को राहत नहीं मिल पाएगी।”

🏗️ कागज़ी उन्नयन नहीं, जमीनी बदलाव की जरूरत

सरकार की घोषणा के अनुसार अस्पताल में डिजिटल एक्स-रे मशीन लगाई जाएगी और भवन विस्तार के कार्यों की जिम्मेदारी उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन परिषद को दी गई है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अस्पतालों के उन्नयन की घोषणाएं पहले भी होती रही हैं, पर उनमें से कई फाइलों से आगे नहीं बढ़ पाईं। इसलिए इस बार जनता “समयबद्ध क्रियान्वयन” की मांग कर रही है।

🩺 पहाड़ की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल

उत्तराखंड के अधिकांश पर्वतीय जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति चिंताजनक है। डॉक्टरों की कमी, नर्सिंग स्टाफ का अभाव, और रेफर प्रणाली की विवशता से ग्रामीण लगातार त्रस्त हैं। चौखुटिया का आंदोलन इस सच्चाई को सामने लाता है कि स्वास्थ्य सेवाएं अब केवल सरकारी योजनाओं और भाषणों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।

🧍‍♀️ जनता की मांग — स्वास्थ्य को राजनीति नहीं, प्राथमिकता बनाओ

आंदोलनकारियों का कहना है कि यह संघर्ष केवल चौखुटिया का नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों की आवाज है। वे चाहते हैं कि सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में सिर्फ घोषणाओं से आगे बढ़कर वास्तविक सुधार करे — क्योंकि अस्पताल की दीवारों पर नया नामपट्ट लग जाने से इलाज की सुविधा नहीं मिलती।

चौखुटिया आंदोलन ने एक बार फिर दिखा दिया कि जब जनता अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरती है, तो सरकार को सुनना पड़ता है। शासनादेश जारी होना पहला कदम है, लेकिन अब पूरा उत्तराखंड देखेगा कि क्या ये फैसला चौखुटिया की बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था को वास्तव में स्वस्थ बना पाएगा या नहीं।

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