उत्तराखण्ड
डोईवाला की घटना ने झकझोर दिया, स्टोन क्रेशर में कूड़ा बीनने वाली लड़की की मौत का मामला!
क्रेशर में फंदे से झूलती मिली नाबालिग लड़की की लाश, चार लड़के हिरासत में — डोईवाला की घटना ने झकझोर दिया
देहरादून | डोईवाला |
सुस्वा नदी के किनारे कुड़कावाला क्षेत्र में शनिवार सुबह एक क्रेशर प्लांट में ऐसा दर्दनाक मंजर सामने आया, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। कबाड़ बीनने निकली तीन नाबालिग बच्चियों में से एक की लाश फंदे से झूलती हुई कमरे में मिली। उसकी उम्र शायद इतनी भी नहीं थी कि उसे दुनिया की असल साजिशों की समझ हो। लेकिन उसे “चोरी” के शक में बंद कर दिया गया… और कुछ ही देर बाद उसकी मौत की खबर आ गई।
क्या था मामला?
डोईवाला पुलिस को शनिवार सुबह सूचना मिली कि एक किशोरी ने सुस्वा नदी के पास स्थित एक क्रेशर के कमरे में फांसी लगा ली है। पुलिस जब मौके पर पहुंची तो पता चला कि कबाड़ बीन रही तीन लड़कियों को प्लांट में काम करने वाले चार युवकों ने “लोहे की चोरी” के शक में रोका था। दो लड़कियां किसी तरह भाग निकली, लेकिन एक लड़की पकड़ कर लिया और फिर उसे एक कमरे में बंद कर दिया।
इन युवकों ने खुद पुलिस को फोन कर बताया कि उन्होंने एक युवती को “चोरी करते पकड़ा है और उसे कमरे में बंद किया है।” लेकिन चंद मिनटों बाद वही युवक यह सूचना देते हैं कि “लड़की ने कमरे में फांसी लगा ली।”
सीसीटीवी और फॉरेंसिक टीम जांच में जुटी
घटनास्थल पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को खंगाला जा रहा है। पुलिस ने बताया कि फुटेज मिल चुके हैं और उनकी बारीकी से जांच हो रही है। फॉरेंसिक टीम को मौके पर बुलाकर कमरे की छानबीन करवाई गई है। मौके को सील कर दिया गया है और क्रेशर को भी बंद कराने की सिफारिश पुलिस ने तहसीलदार को भेज दी है।
परिवार बेहाल, चारों युवक हिरासत में
मृतका के परिजन केशवपुरी बस्ती के निवासी हैं। उन्हें सूचना दे दी गई है और पुलिस उनसे तहरीर मिलने का इंतजार कर रही है ताकि केस में आगे की कार्रवाई शुरू की जा सके। चारों युवकों को संदिग्ध मानते हुए पुलिस ने हिरासत में ले लिया है और पूछताछ चल रही है।
हत्या या आत्महत्या — कौन जिम्मेदार?
प्रश्न यह है कि जब एक नाबालिग लड़की को चोरी के शक में चार युवक मिलकर एक कमरे में बंद करते हैं — तो क्या यह कानूनी था? और जब कुछ देर बाद उसी कमरे से उसकी मौत की खबर आती है, तो क्या यह केवल “आत्महत्या” है? क्या यह भय का, अपमान का, उत्पीड़न का नतीजा था? या कुछ और भी जो छुपाया जा रहा है?
व्यवस्था पर सवाल
इस घटना ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या किसी को इतनी छूट है कि वो “चोरी के शक” में किसी गरीब बच्ची को बंद कर दे? क्या गरीब बच्चों के पास इंसाफ पाने का कोई रास्ता है? क्या इस समाज में कबाड़ बीनने वाली बच्चियां सिर्फ शक के आधार पर अपमानित होकर अपनी जान देने को मजबूर हो जाएंगी?
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