उत्तराखण्ड
रामनगर की सबसे पुरानी रामलीला का परदा गिरा, चिलकिया गाँव में गूँजी “जय श्रीराम” की गूंज
रामनगर।
3 अक्टूबर की रात चिलकिया गाँव में जब प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ, तो केवल मंच ही नहीं, पूरा गाँव भावनाओं से सराबोर हो गया। 22 सितम्बर से शुरू हुई यह रामलीला कल रात संपन्न हो गई—और इसके साथ खत्म हुई 71 साल पुरानी परंपरा का एक और अध्याय।
जी हाँ, साल 1954 से लगातार चल रही चिलकिया की रामलीला रामनगर की सबसे पुरानी रामलीला कही जाती है। न कहीं स्क्रिप्ट बदली, न जज़्बात—बस बदलते वक्त में भी यह परंपरा पहले दिन जैसी ही जीवंत रही।
हर वर्ष की भांति इस बार के मंचन में भी भीड़ उमड़ी रही। बुजुर्गों के लिए यह बचपन की यादें थीं और बच्चों के लिए पहली बार देखा गया “लाइव महाकाव्य”।
रामलीला के अंतिम दिन मंच पर एक ओर श्रीराम का तिलक हुआ तो दूसरी ओर गाँव की बेटियों को भी सम्मान मिला। चिलकिया की ही MP इंटर कॉलेज की मेधावी छात्रा प्रशस्ति करगेती और GPP इंटर कॉलेज की सुहासी अधिकारी को सम्मानित किया गया। यह बताता है कि रामलीला अब सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं रही, बल्कि गाँव की सामाजिक और सांस्कृतिक धड़कन बन चुकी है।
मुख्य अतिथि रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व दर्जा मंत्री पुष्कर दुर्गापाल, जबकि विशिष्ट अतिथि रहे विजयपाल रावत। दोनों ने ग्रामीणों और कलाकारों और रामलीला आयोजकों के उत्साह की सराहना की।
और जब राज्याभिषेक का दृश्य संपन्न हुआ, तो ढोलक की थाप और “जय श्रीराम” की गूंज के बीच सभी कलाकारों को उनके शानदार अभिनय के लिए पुरस्कार भी दिए गए।
ये रामलीला सिर्फ मंचन नहीं है—यह इतिहास है, परंपरा है और गाँव की आत्मा है।
71 साल से लगातार जलते दीपक की तरह, चिलकिया की रामलीला आज भी उतनी ही रोशनी बिखेर रही है।




