उत्तराखण्ड
“मौन की ताकत से गरजी आवाज़: हरीश रावत का शांतिपूर्ण विद्रोह, मलिन बस्तियों को तोड़ने की नीति के खिलाफ भरा हुंकार”
“मौन की ताकत से गरजी आवाज़: हरीश रावत का शांतिपूर्ण विद्रोह, मलिन बस्तियों को तोड़ने की नीति के खिलाफ भरा हुंकार”
रामनगर।
देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों सरकार की नीतियों के खिलाफ एक नई आवाज़ उठ रही है—शांत, पर बेहद असरदार। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने मलिन बस्तियों को उजाड़ने की सरकारी कार्यवाही के विरोध में रामनगर में मौन व्रत रखकर एक अलग अंदाज में विरोध दर्ज कराया। उन्होंने यह मौन व्रत रामनगर के भवानीगंज स्थित शहीद भगत सिंह की मूर्ति के सामने रखा, जिससे यह संदेश और भी गूंजदार हो गया।
हरीश रावत इन दिनों अपने दस दिवसीय कुमाऊं दौरे पर हैं। इस कड़ी में रामनगर पहुंचने पर कार्यकर्ताओं ने भवानीगंज में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। माल्यार्पण के बाद रावत सीधे पहुंचे भगत सिंह की प्रतिमा के पास, जहां उन्होंने अपने समर्थकों के साथ 31 मिनट का मौन व्रत रखा।
इस प्रतीकात्मक विरोध के माध्यम से उन्होंने प्रदेश सरकार की उन नीतियों पर सवाल खड़े किए, जिनके तहत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में वर्षों से बसी मलिन बस्तियों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, वो भी बिना किसी ठोस पुनर्वास योजना के।
हरीश रावत ने कहा,
“देहरादून में एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट के नाम पर रिस्पना और विंडाल नदियों के किनारे बसे हजारों परिवारों के घरों पर लाल निशान लगा दिए गए हैं। यह सिर्फ निशान नहीं, डर का प्रतीक बन चुके हैं। लोगों को उनके घरों से बेदखल किया जा रहा है, जबकि पुनर्वास की कोई योजना नहीं है।”
उन्होंने दावा किया कि उनके कार्यकाल में मलिन बस्तियों के सर्वेक्षण के आधार पर विधानसभा में एक कानून पारित कराया गया था, जिसके तहत इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक देने की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
“जब तक यह कानून प्रभाव में है, तब तक किसी भी व्यक्ति को उसकी बस्ती से जबरन नहीं हटाया जा सकता, जब तक उसे मुआवजा और वैकल्पिक पुनर्वास नहीं दिया जाए,” उन्होंने जोर देकर कहा।
पूर्व मुख्यमंत्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि हल्द्वानी की वनभूलपुरा और ढोलक बस्ती के निवासियों को इसी कानून के तहत पहले भी राहत दी जा चुकी है। उन्होंने सरकार से मांग की कि वह वर्ग 4 से लेकर वर्ग 10 ख तक की भूमि पर बसी बस्तियों का शीघ्र नियमितीकरण करे, जिससे लाखों लोगों को राहत मिल सके और उनका भविष्य सुरक्षित हो।
रावत ने इस पूरे घटनाक्रम को “गरीबों के खिलाफ साजिश” करार दिया और कहा कि जब तक सरकार अपने फैसलों पर पुनर्विचार नहीं करती, तब तक कांग्रेस और जनता चुप नहीं बैठेगी। उन्होंने मौन के माध्यम से एक गूंजती चेतावनी दी—“यह लड़ाई केवल जमीन की नहीं, जीवन की है।”
इस मौके पर नगर पालिकाध्यक्ष मोहम्मद अकरम, पूर्व दर्जा मंत्री पुष्कर दुर्गापाल,पूर्व ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी, शेर सिंह लटवाल, डॉ. निशांत पपनै, ताईफ खान, विकास डंगवाल, ललित मोहन बिष्ट, सभासद तनुज दुर्गापाल, महिपाल डंगवाल सहित अनेक स्थानीय जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता मौजूद रहे।
हरीश रावत का यह मौन व्रत न केवल एक राजनीतिक संदेश था, बल्कि प्रदेश के लाखों गरीबों की आवाज़ को मंच देने का प्रयास भी था। अब देखने वाली बात यह है कि सरकार इस शांति से किए गए विरोध को सुनेगी या फिर सड़कों पर शोर बढ़ेगा।







