उत्तराखण्ड
सोवियत समाजवादी संविधान 1936 पुस्तिका के रूप में हुई लोकार्पित
सोवियत समाजवादी संविधान 1936 पुस्तिका के रूप में हुई लोकार्पित
रामनगर। समाजवादी लोक मंच के तत्वाधान में आज अग्रवाल सभा के हॉल में आयोजित कार्यक्रम में ‘सोवियत समाजवादी संविधान 1936’ के हिन्दी रूपान्तरण के साथ प्रकाशित पुस्तिका का लोकार्पण किया गया। इस कार्यक्रम में विभिन्न जनवादी संगठनों के प्रतिनिधियों की सहभागिता रही।
पुस्तिका के प्रकाशन के औचित्य के विषय में बताते हुए समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीष कुमार ने कहा कि 1917 की क्रांति के बाद मजदूर किसान वर्ग द्वारा बनाए गए समाजवादी संविधान में जनता को रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया परंतु भारत में यह अधिकार अभी तक हम लोगों को नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि समाजवादी समाज में प्रशासन भी जनता द्वारा चुना जाता था तथा जनता को चुने गए जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार था। उन्नत समाज बनाने के क्रम में यह जानना जरूरी है कि सोवियत संघ की जनता किस तरह के नियमों को अपना कर समाजवाद का निर्माण कर रही थी।
मजदूर संगठन ‘संघर्षरत मेहनतकश’ के प्रतिनिधि साथी मुकुल ने बताया कि करीब 90 वर्ष पहले भी तकनीक का विकास इतना हो चुका था कि सोवियत संघ के मजदूरों ने काम के घण्टे घटाते हुए 7 कर लिए थे और उनका संघर्ष इस अवधि को और भी कम करवाने के लिए जारी था। वहीं आज तकनीक के और भी जबर्दस्त विकास के बावजूद हमारी सरकारें 12 घण्टे प्रतिदिन काम करवाने की कोशिशें कर रही हैं ताकि बड़े-बड़े कॉर्पोरेट्स की तिजोरियाँ भरी रहें।
महिला एकता मंच की ओर से बोलते हुए सीमा सैनी ने बताया कि जहाँ आज भी भारत की महिलाओं को घर के काम और बाहर के काम के बीच साम्य बैठाने की कोशिशों में काम का भारी बोझ उठाने के बावजूद समाज के पिछले पायदान पर ही रहना पड़ रहा है, वहीं सोवियत संघ के संविधान ने न केवल महिलाओं को मताधिकार दिया बल्कि उनके काम का बोझ घटाने के लिए उनके बच्चों की परवरिश में भी हाथ बँटाया और साथ ही उन्हें पुरुषों के बराबर ही वेतन दिलवाना सुनिश्चित करने जैसे अनेकों नियमों को धरातल पर उतारा।
समाजवादी आंदोलन से लंबे समय से जुड़े रहे पत्रकार एवं अनुवादक पारिजात, राहुल, उपपा नेता आसिफ अली, विद्यावती आर्य आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।संचालन सौरभ इंसान ने किया।