उत्तराखण्ड
सर्वोच्च न्यायालय ने दिया षडयंत्र के आरोपी को कोर्ट में पेश होने के निर्देश, छः साल से फरार था आरोपी
सर्वोच्च न्यायालय ने दिया षडयंत्र के आरोपी को कोर्ट में पेश होने के निर्देश, छः साल से फरार था आरोपी
रामनगर। छः वर्ष पूर्व एक कृषक की गोली मारकर हत्या का प्रयास करने के षड्यंत्रकारी आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने दो सप्ताह में स्थानीय ट्रायल कोर्ट में पेश होने के निर्देश दिए हैं। आरोपी पुलिस द्वारा इनामी घोषित होने के बाद भी पिछले छः वर्ष से कानूनी दांव पेंच के सहारे मुकदमें का सामना करने से बच रहा था।
यह बहुचर्चित घटनाक्रम साल 2019 की गांधी जयंती के दिन का है, जब छोई स्थित बलवीर गार्डन में चूनाखान बैलपोखरा निवासी चंद्रशेखर टम्टा पुत्र केशोराम को अज्ञात लोगों ने हमला कर जान से मारने का प्रयास किया था। गंभीर रूप से घायल चंद्रशेखर के पुत्र हेमंत शेखर की तहरीर पर दर्ज मुकदमे की जांच के दौरान गोली चलाने वाले शूटरों की गिरफ्तारी के बाद उन्हें दिल्ली निवासी महेश टम्टा उर्फ महेश चंद्रा पुत्र शंकर लाल द्वारा हायर करने की बात सामने आई थी। जिसके आधार पर मुकदमें में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307, 34 के बाद 120 बी की बढ़ोतरी कर महेश को षड्यंत्रकारी घोषित किया गया था।
आरोपी महेश द्वारा गिरफ्तारी से बचने का प्रयास करने पर पुलिस द्वारा उसके दिल्ली स्थित आवास पर कुर्की के साथ ही उसकी गिरफ्तारी पर पहले पच्चीस तथा बाद में पचास हजार का इनाम भी घोषित किया गया था। इसी दौरान आरोपी द्वारा अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ नैनीताल उच्च न्यायालय से 29 सितम्बर 2023 को अग्रिम जमानत ले ली थी जिसे हाई कोर्ट ने आरोपी द्वारा मुकदमें को जान बूझकर लटकाने के कारण 25 जून 2025 को रद्द भी कर दिया था।
हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत रद्द होने के बाद आरोपी ने राहत के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। जहां सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति पंकज मिठाल तथा न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने हाई कोर्ट नैनीताल के निर्णय पर कोई हस्तक्षेप न करते हुए याचिकाकर्ता महेश टम्टा को दो सप्ताह की अवधि के भीतर ट्रायल न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिए। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, हम उच्च न्यायालय द्वारा पारित जमानत रद्द करने के आदेश में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझते। फिर भी, हम याचिकाकर्ता को मुकदमे में सहयोग करने और विलंबकारी रणनीतियाँ नहीं अपनाने की अनुमति देते हैं तथा यदि न्यायालय याचिकाकर्ता की सद्भावना से मुकदमे को आगे बढ़ाने के संबंध में संतुष्ट हो जाता है, तो तीन माह की अवधि के बाद याचिकाकर्ता द्वारा पुनः प्रस्तुत की जाने वाली किसी भी जमानत अर्जी पर विचार करने के लिए विचारण न्यायालय को खुला रखा जाता है। याचिकाकर्ता को आज से दो सप्ताह की अवधि के भीतर विचारण न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है।








