उत्तराखण्ड
टाइगर के आतंक के खिलाफ ग्रामीणों का हल्ला बोल, प्रशासन के मुकदमे से नहीं डरे—अब और आक्रामक हुए आंदोलनकारी
रामनगर (नैनीताल)— कार्बेट पार्क के आसपास के गांवों में बाघ का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा, लेकिन प्रशासन अपनी नाकामी छिपाने के लिए ग्रामीणों पर ही मुकदमे दर्ज कर उन्हें डराने की कोशिश कर रहा है। बावजूद इसके, ग्रामीण झुकने को तैयार नहीं हैं, बल्कि अब और आक्रामक रुख अपनाते हुए संघर्ष को तेज कर दिया है।
आज सांवल्दे में प्रदर्शन जारी रहा, जहां संयुक्त संघर्ष समिति ने 50 ग्रामीणों पर मुकदमा दर्ज करने की कड़ी निंदा की और इसे प्रशासन द्वारा अपनी असफलता छिपाने की साजिश करार दिया। समिति ने साफ कहा कि “हम अपनी जान जोखिम में डालकर जीने को मजबूर हैं, और जब हम अपनी सुरक्षा की मांग करते हैं, तो हमें अपराधी बना दिया जाता है!”
वन प्रशासन के फर्जी मुकदमों से नहीं डरेंगे ग्रामीण
धरने का संचालन कर रही तारा बेलबाल ने कहा कि ग्रामीण पिछले एक महीने से लगातार आदमखोर टाइगर को पकड़ने की मांग कर रहे हैं, लेकिन वन विभाग कान में तेल डाले बैठा है। प्रशासन उनकी आवाज़ दबाने के लिए फर्जी मुकदमों का सहारा ले रहा है, लेकिन ग्रामीण डरने वाले नहीं हैं।
महिलाओं ने भी इस लड़ाई में पूरी ताकत से कूदने का ऐलान किया। उन्होंने साफ कहा—
“अगर अपनी सुरक्षा की मांग करना गुनाह है, तो हम जेल जाने को भी तैयार हैं!”
1 साल में 8 से ज्यादा मौतें, फिर भी प्रशासन बेखबर
संयुक्त संघर्ष समिति के महेश जोशी ने बताया कि पिछले एक साल में टाइगर और अन्य जंगली जानवरों के हमलों में 8 से अधिक ग्रामीण मारे जा चुके हैं। ये मौतें पार्क प्रशासन की लापरवाही का नतीजा हैं, लेकिन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही।
उन्होंने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा—
“वन विभाग की लापरवाही से लोग मर रहे हैं, लेकिन पुलिस वन विभाग के दबाव में काम कर रही है। दोषी पार्क निदेशक साकेत बडोला, उपनिदेशक राहुल मिश्रा और रेंज अधिकारी भानु प्रकाश के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की जगह, निर्दोष ग्रामीणों को ही अपराधी बना दिया गया।”
18 फरवरी को होगा महाधरना, आंदोलन और तेज़ होगा
संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक ललित उप्रेति ने घोषणा की कि 18 फरवरी को सांवल्दे में एक विशाल सभा का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान आगे की रणनीति तय होगी और आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
जब तक आदमखोर बाघ को पकड़ा नहीं जाता और ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी।
प्रशासन की नाकामी पर सवाल
➡️ अगर ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, तो उन्हें अपराधी क्यों बनाया जा रहा है?
➡️ जंगली जानवरों के हमलों में हुई मौतों पर जिम्मेदार अधिकारियों पर मुकदमा क्यों नहीं होता?
➡️ क्या प्रशासन की ज़िम्मेदारी सिर्फ आंकड़े छिपाना और पीड़ितों को धमकाना रह गई है?
ग्रामीणों का आक्रोश चरम पर है। अब यह लड़ाई सिर्फ टाइगर के आतंक से सुरक्षा की नहीं, बल्कि सरकार और प्रशासन की असंवेदनशीलता के खिलाफ भी है।
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