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यह इश्क नहीं आसां: बिजनौर-अमरोहा की मोहब्बत बनी मौत की कहानी, दानिश-शमा ने साथ जीने का सपना देखा, साथ मर गए

यह इश्क नहीं आसां: बिजनौर-अमरोहा की मोहब्बत बनी मौत की कहानी, दानिश-शमा ने साथ जीने का सपना देखा, साथ मर गए

बिजनौर/अमरोहा।
“ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे,
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है…”

ग़ालिब की ये मशहूर लाइनें उत्तर प्रदेश के बिजनौर और अमरोहा के दो प्रेमियों की दर्दनाक कहानी पर सटीक बैठती हैं। यह कहानी सिर्फ इश्क की नहीं है, यह कहानी उस बेरहम समाज की भी है, जो आज भी जाति, धर्म, रिवाजों और झूठी मान-प्रतिष्ठा के नाम पर दो सच्चे दिलों को मिलने नहीं देता।

प्रेम में नाकामी, और फिर मौत

बिजनौर के बढ़ापुर थाना क्षेत्र के एक गांव में रहने वाले 24 वर्षीय दानिश और अमरोहा की रहने वाली 22 वर्षीय शमा एक-दूसरे से बेइंतेहा मोहब्बत करते थे। दोनों शादी करना चाहते थे, साथ एक जिंदगी बिताने का सपना देख रहे थे। मगर अफसोस, उनके प्यार के बीच खड़ी हो गई समाज की दीवार और परिवारों की जिद।

बताया जा रहा है कि दोनों के परिवार इस रिश्ते के खिलाफ थे। तमाम कोशिशों और मिन्नतों के बाद भी जब परिवार नहीं माने, तो इस प्यार के परिंदों ने उम्मीद छोड़ दी। दानिश ने अपने निर्माणाधीन मकान में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। और जब यह ख़बर शमा तक पहुँची, तो उसने भी ज़हर खाकर जान दे दी।

एक दिन में दो लाशें, दो शहरों में एक मातम

दानिश की लाश जैसे ही मिली, पूरे गांव में कोहराम मच गया। लोग हैरान थे कि एक खुशमिजाज लड़का, जो अपना घर बना रहा था, अचानक ऐसा खौफनाक कदम क्यों उठा बैठा? लेकिन जब उसकी मौत की वजह सामने आई, तो हर आंख नम हो गई।

शमा के घर अमरोहा में जैसे ही यह खबर पहुँची कि दानिश अब इस दुनिया में नहीं रहा, उसने भी जहर खा लिया। अस्पताल ले जाने की कोशिश हुई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उसके होठों पर आखिरी शब्द थे – “मैं उसके बिना नहीं जी सकती।”

प्यार हार गया, समाज जीत गया

यह कोई पहली कहानी नहीं है जहां प्यार समाज की जंजीरों में दम तोड़ देता है। मगर हर बार जब कोई दानिश और कोई शमा इस तरह अपनी जान देते हैं, तो सवाल उठता है – क्या आज भी प्यार करना गुनाह है? क्या दो बालिग लोग अपनी मर्ज़ी से जीवनसाथी नहीं चुन सकते? क्या अब भी समाज की ‘इज्ज़त’ इंसान की जान से बड़ी है?

दानिश और शमा की मोहब्बत में कोई कमी नहीं थी, कमी थी तो समझदारी की उस समाज में जो आज भी अपने बच्चों की खुशी से ज्यादा अपने झूठे रिवाजों को तवज्जो देता है।

पुलिस जांच में क्या निकला?

पुलिस के मुताबिक, दानिश अपने निर्माणाधीन मकान में अकेला था। देर रात उसकी लाश फंदे से झूलती मिली। पास ही उसका मोबाइल पड़ा था, जिसमें आखिरी बार शमा से बात की गई थी। पुलिस ने मोबाइल कब्जे में लेकर कॉल डिटेल खंगालनी शुरू कर दी है।

उधर अमरोहा पुलिस ने भी शमा की मौत को लेकर जांच शुरू की है। शुरुआती जांच में यह स्पष्ट हो गया है कि दोनों के बीच गहरा प्रेम संबंध था और परिवारों के विरोध के चलते वे तनाव में थे।

दो मौतें, एक सवाल

दानिश और शमा चले गए – हमेशा के लिए। मगर उनके पीछे समाज को एक बड़ा सवाल छोड़ गए – क्या अब भी प्यार करना इतना बड़ा जुर्म है कि इसकी सज़ा मौत है? क्या दो लोगों को सिर्फ इसलिए जुदा कर देना जायज़ है क्योंकि उनकी जाति या धर्म अलग है? क्या हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं जो मोहब्बत को कुर्बानी में बदल देता है?

शमा की सहेली का दर्द

शमा की एक सहेली ने कहा, “वो कहती थी कि दानिश के बिना मैं अधूरी हूँ। उसकी आँखों में दानिश के लिए सिर्फ प्यार था, कोई जिद नहीं थी। वो कहती थी कि अगर घरवाले नहीं माने तो हम भाग कर शादी नहीं करेंगे, क्योंकि हम अपनों का दिल नहीं दुखाना चाहते। मगर देखिए, अब सब कुछ खत्म हो गया।”

क्या मिलेगा न्याय?

बड़ा सवाल यह भी है कि क्या समाज और परिवार की हठधर्मी को कभी अपराध माना जाएगा? क्या प्यार में टूटे हुए इन मासूम दिलों की मौत पर कोई सजा तय होगी? या फिर यह मामला भी कुछ दिनों बाद ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

दानिश और शमा अब इस दुनिया में नहीं हैं। मगर उनकी कहानी एक आईना है – जिसमें आज का समाज अपना चेहरा देख सकता है। सवाल पूछ सकता है खुद से – क्या हमने फिर एक सच्चे प्यार को मरने दिया?

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