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राजनीति

दिल्ली चुनाव: राजनीतिक उथल-पुथल और मतदाताओं की उम्मीदें

दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक गलियारों में गर्मागर्म चर्चा जारी है। भाजपा, आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच मुकाबला तेज हो गया है, लेकिन इस बार के चुनाव में कई नए मोड़ देखने को मिल रहे हैं। आइए, इस चुनावी रंगमंच पर हो रही घटनाओं और राजनीतिक दांव-पेच पर एक नजर डालते हैं।

भाजपा का दमखम और उत्तर प्रदेश का सबक
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हाल के वर्षों में अपनी मजबूत रणनीति और जनाधार के बल पर कई चुनावी जीत दर्ज की हैं। हालांकि, इस बार दिल्ली चुनाव में भाजपा का वह पुराना दमखम दिखाई नहीं दे रहा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति उत्तर प्रदेश के उपचुनाव जैसी है, जहां भाजपा नेता आराम की मुद्रा में थे, लेकिन नतीजे उनके पक्ष में आए। क्या दिल्ली में भी ऐसा ही होगा? यह देखना दिलचस्प होगा।

केजरीवाल की चुनौतियां और AAP की उम्मीदें
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस बार कठिन परिस्थितियों में चुनाव लड़ रहे हैं। उनके अनुज और नायिका, तीनों सीटों पर घिरे हुए हैं। यह स्थिति ऑस्ट्रेलिया की बोलिंग पॉलिसी जैसी लगती है, जहां बल्लेबाज को चारों तरफ से घेर लिया जाता है। हालांकि, AAP 35 से 40 सीटों पर अपराजित दिखती है। दिल्ली में बहुमत के लिए 36 सीटों का आंकड़ा जरूरी है, और AAP इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

कांग्रेस का बढ़ता वोटिंग प्रतिशत
कांग्रेस पार्टी इस बार चुनाव लड़ने का सही निर्णय लेती दिख रही है। विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का वोटिंग प्रतिशत बढ़ सकता है। हालांकि, पार्टी को शून्य से आगे बढ़ने के लिए मजबूत रणनीति की जरूरत है। क्या कांग्रेस इस बार अपनी स्थिति सुधार पाएगी? यह सवाल अभी बना हुआ है।

मुस्लिम मतदाताओं का रुख
अरविंद केजरीवाल अब मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए तीसरे पक्ष की ओर देख रहे हैं। हालांकि, मुस्लिम समुदाय के बीच उनकी छवि धूमिल हो चुकी है। केजरीवाल को लगता है कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय को धोखा दिया है, और इस वजह से उनका समर्थन हासिल करना मुश्किल हो रहा है। दिल्ली में 13% मुस्लिम मतदाता हैं, और उनमें से अधिकांश केजरीवाल को वोट नहीं देना चाहते हैं। हालांकि, 10% मुस्लिम मतदाता AAP को, 1% मजलिस को और 2% कांग्रेस को वोट दे सकते हैं।

### समाजवादी पार्टी की भूमिका
समाजवादी पार्टी (सपा) के कई नेता और कार्यकर्ता, खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में, टीम केजरीवाल के रूप में काम कर रहे हैं। हालांकि, सपा को AAP का समर्थन करने से बचना चाहिए था, क्योंकि केजरीवाल मुस्लिम समुदाय से दूर हो चुके हैं। इसके बावजूद, सपा के कार्यकर्ताओं ने AAP के पक्ष में काम किया है, और अब उनकी जवाबदेही तय होगी।

ओवैसी की चुनावी रणनीति
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM), इस बार दिल्ली चुनाव में एक सीट जीत सकती है। ओखला और मुस्तफाबाद में से कोई एक सीट AIMIM के खाते में जा सकती है। ओवैसी की पार्टी को दोनों जगहों पर 50,000 से ज्यादा वोट मिलने की उम्मीद है।

दिल्ली के मतदाताओं का रुख
दिल्ली के अमीर वर्ग के मतदाता भाजपा को वोट देने जा रहे हैं, जबकि गरीब वर्ग AAP का समर्थन कर रहा है। बीच का वर्ग अभी भी भटकाव की स्थिति में है। दिल्ली के मतदाता जाति के आधार पर नहीं, बल्कि अपनी जरूरतों के आधार पर वोट करते हैं। इस बार चुनाव का नतीजा पूर्वांचली मतदाताओं पर निर्भर करेगा, जो दिल्ली की आबादी का 16% हैं।

दिल्ली चुनाव 2025 राजनीतिक उथल-पुथल और मतदाताओं की उम्मीदों का एक दिलचस्प मिश्रण है। भाजपा, AAP और कांग्रेस के बीच मुकाबला तेज है, लेकिन इस बार के चुनाव में कई नए कारक शामिल हैं। मुस्लिम मतदाताओं का रुख, ओवैसी की चुनावी रणनीति और दिल्ली के मतदाताओं की जरूरतें इस चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं। आखिरकार, दिल्ली की जनता किसे अपना नेता चुनती है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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