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हिमालय की गोद में बसा एक ऐसा गाँव जहां एक बार जायेंगे तो बार बार जाने का मन करेगा।

गणेश रावत

जीवन की आपाधापी एवं भागदौड़ के बीच कुदरत के हसीन नजारों से रूबरू होने का अवसर मिले, तो खुद को सम्मोहित होने से भला कौन रोक सकता है। ऐसे में एक ही जगह आसमान छूते पर्वत, विशाल हरे-भरे पेड़, कलकल बहते झरने, शोर-मचाकर एक-दूसरे को आगोश में समेटती नदियां, हरे-भरे खेत व बागान और मखमली घास वाली घाटियां देखने को मिल जाऐं, तो यह अनुभव किसी जन्नत की सैर से कम नहीं होगा। कुदरत की बाहों में पसरा गाँव ‘हर्षिल’ भी कुछ ऐसा ही है। जो भी ‘हर्षिल’ आया, यहाँ के खूबसूरत नजारे उसके स्मृति-पटल में सदैव के लिए बस गए।

उत्तराखण्ड हिमालय के सीमांत उत्तरकाशी जिले में स्थित ‘हर्षिल’ गाँव में प्रकृति ने खुले हाथों से सौंदर्य का खजाना लुटाया है।
‘हर्षिल’ पहुँचने के लिए पहाड़ की घुमावदार सड़कों का सफर तय करना पड़ता है। यहाँ पहुँचने के लिए नजदीकी एअरपोर्ट 260 किलोमीटर दूर देहरादून के जौलीग्रांट में है, जबकि रेल के सफर से हर्षिल आने वालों का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा हर्षिल 243 किलोमीटर दूर है। देश की राजधानी दिल्ली से यहां की दूरी करीब 470 किलोमीटर है। इसके लिए आपको वही रास्ता अपनाना पड़ता है, जो गंगा के उद्गम स्थल ‘गंगोत्री’ धाम की ओर जाता है। सड़कों के नेटवर्क से हर्षिल, ‘उत्तरकाशी’ के जरिए सीधा जुड़ा हुआ है। गंगोत्री धाम का प्रवेश द्वार उत्तरकाशी भागीरथी नदी के तट पर बसा सुंदर शहर है। इसके ठीक ऊपर ‘वरूणावर्त’ नाम की पहाड़ी है। विश्वनाथ की नगरी से ‘हर्षिल’ जाने के लिए 70 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है और अधिकतर यात्रा भागीरथी नदी की धारा के किनारे-किनारे ही होती है। भागीरथी की अविरल धारा चट्टानों के बीच से शोर मचाकर यात्रा के रोमांच को कई गुना बढ़ा देती है। पहाड़ों के बीच अठखेलियां करती भागीरथी की पवित्र जलधारा संदेश सुनाते हुए बहती है कि गति व सतत प्रवाह ही जीवन का दूसरा नाम है। उत्तरकाशी के बाद गंगोरी, मनेरी, भटवाड़ी, गंगनानी, सूखी टॉप जैसी जगहों को पार करने के बाद जैसे-जैसे सफर आगे बढ़ता है, प्रकृति के सुंदर नजारे मन को नई-नई अनुभूतियों से गुदगुदाने लगते हैं।
‘हर्षिल’ एक छोटा सा, शांत और साफ-सुथरी पर्यटक स्थल है। जो लोग सैर-सपाटे के नाम पर भीड़भाड व चकाचौंध पसंद करते है, शायद हर्षिल उनके लिए नहीं बना है। मगर प्रकृति-प्रेमियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। गंगोत्री धाम से सिर्फ 25 किलोमीटर पहले पड़ने वाला हर्षिल भागीरथी नदी के किनारे बसा है। यह खूबसूरत घाटी समुद्र की सतह से दो हजार छः सौ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस घाटी को चारों ओर से घेरे पर्वत शिखरों की ऊँचाई तीन हजार छः सौ मीटर से लेकर चार हजार नौ सौ मीटर तक है। इस हरी-भरी वादी में बिखरे देवदार के जंगलों की सुंदरता किसी परिलोक जैसी अहसास कराती है। इसके अलावा यहां ‘ब्लू-पाइन’ के पेड़ भी इफरात में हैं। ‘हर्षिल’ जहां भगीरथी नदी के तट पर स्थित है, वहीं इस के दरम्यान कुछ अन्य नदी-नाले बहते हुए भागीरथी के प्रवाह में समा जाते हैं। इनमें ‘ककोड़ा गाड़’ और हिमाचल प्रदेश की सीमा से बहकर आने वाला ‘जलंधरी गाड़’ खास हैं। यहीं से एक रास्ता पड़ोसी राज्य हिमाचल की किन्नौर घाटी के लिए निकलता है।

हर्षिल में भगीरथी के तट पर प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर स्थित है। भगवान विष्णु को समर्पित इस प्राचीन मंदिर की काफी मान्यता है। माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं पधारे थे। मंदिर के पास ही नदी के तट पर एक शिला में विष्णु भगवान के पदचिन्ह अंकित हैं। नदी का पानी कम होने पर उस शिला के दर्शन होते हैं। भगवान के चरण पड़ने से वह शिला ‘हरि-शिला’ कहलाई और इस जगह को ‘हरि-शिला’ कहा गया, जो बाद में ‘हर्षिल’ हो गया। खूबसूरत पर्वत-श्रृंखलाओं के बीच स्थित ‘हर्षिल’ गढ़वाल की सबसे रमणीक जगहों में एक माना जाता है। यहां का इतिहास एक ब्रितानी नागरिक जार्ज विल्सन से भी जुड़ा हुआ है। उसने यहां टिहरी नरेश से दो पहाड़ियाँ खरीदी और उस दौरान बड़े पैमाने पर देवदार के जंगलों का सफाया करके लकड़ियाँ बाहर भेजी। विल्सन हिमालय में पाए जाने वाले वन्य जीवों की ट्रॉफीज सप्लाई करने के लिए भी जाना जाता था। विल्सन का हर्षिल में एक खूबसूरत घर था, जो बाद में आग में जलकर खत्म हो गया। उस घर ‘विल्सन हाउस’ को अब नया रंग रूप देकर वन विभाग द्वारा विश्राम गृह बना दिया गया है।

सेब की खेती के लिए प्रसिद्ध हर्षिल में पहला सेब का पेड़ विल्सन ने ही लगाया बताया जाता है। 1840 के आस-पास विल्सन द्वारा लगाया गया सेब का बागीचा आज भी मौजूद है। हर्षिल के सेब काफी मशहूर हैं। अगस्त-सितम्बर के महीने तक यहां के सेब पककर खाने योग्य होते हैं। जिन्हें लज़ीज स्वाद के अलावा पौष्टिक भी माना जाता है। स्वादिष्ट सेब के अलावा यहां की छीमी यानि राजमा काफी प्रसिद्ध है। हर्षिल में वन विभाग द्वारा ग्रीन हाउसों में थुनेर का उत्पादन भी किया जा रहा है। थुनेर यानि टैक्सस बगाटा कैंसर के उपचार के लिए बनने वाली दवाओं में प्रयुक्त होने वाली जड़ी-बूटी है। हर्षिल ट्रेकिंग के शौकीन प्रकृति-प्रेमियों को भी खूब भाता है। यहां से उच्च हिमालयी क्षेत्रों को कई पैदल रास्ते जाते हैं, जिन पर चलकर प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए सैलानी निकल पड़ते हैं।

हर्षिल की रमणीकता को देखकर यहां के नजारे किसी फिल्मी कहानी का हिस्सा लगते हैं। फिल्मकारों ने भी यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को भुनाया है। यहां फिल्माई गई राम तेरी गंगा मैली की शूटिंग को लोग आज भी याद करते हैं। ऊँचाई पर होने के कारण हर्षिल की जलवायु काफी सर्द है। दिसंबर से मार्च तक यहां बर्फवारी के कारण कड़ाके की ठण्ड पड़ती है। ऐसे में यहां घूमने का बेहतर समय अप्रैल से नवम्बर तक है। सर्दियों में यहां रहने वाले अधिकांश लोग बर्फवारी के कारण पलायन कर जाते हैं, सिवाय भारतीय सीमाओं की रक्षा में तैनात सेना के जवानों के। हर्षिल एक सैन्य क्षेत्र है, इसलिए यहां विदेशी सैलानियों की आवाजाही भी प्रतिबंधित है।

हर्षिल का एक खास आकर्षण यहां का ‘बगोरी’ गांव है। हर्षिल के बीच बहने वाली छोटी-छोटी नदियां पर बने पुलों को पार करके बगोरी गांव पहुँचा जा सकता है। पत्थरों के बीच अठखेलियां करती पानी की धाराओं को निहारते-निहारते बगोरी गांव पहुँचने का अपना मजा है और यहां पहुँचकर यह मजा और भी बढ़ जाता है। गाँव में बने लकडी़ के खूबसूरत घर तथा यहां का जनजीवन कौतुहल पैदा करने को काफी है। लकड़ी के मकानों में की गई नक्काशी और यहां उकेरे गए सुंदर डिजाइन किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकते हैं। यहां रहने वाले जनजाति समाज के लोग काफी अच्छे हैं, इनका मुख्य पेशा पशुपालन है। भेड़-बकरियों की ऊन एवं उससे गरम कपड़े तैयार करते इन्हें देखा जा सकता है। इस गाँव के लोगों को यहां चीन सीमा के पास से लाकर बसाया गया है। गाँव में बने बौद्ध मठ और ध्वजों पर लिखे मंत्र गाँव के बारे में उत्सुकता जगाते हैं। इसीलिए हिमालय की वादियों में बसे बगोरी गाँव की एक झलक सैलानियों के लिए यादगार बन जाती है।

हर्षिल से तीन किलोमीटर दूर ‘धराली’ नाम का सुंदर गांव पड़ता है। धराली के ठीक सामने पहाडी़ पर ‘मुखवा’ नाम का गांव दिखाई पड़ता है। सर्दियों में जब गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, मुखवा गांव के इसी मंदिर में गंगा मैयया की छः माह तक पूजा-अर्चना होती है। गाँव से भागीरथी नदी व इर्द-गिर्द का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। इस खूबसूरत गांव में भी लकड़ी के मकानों के डिजाइन हैरान करते हैं। गाँव के ठीक ऊपर निर्मल जल का एक झरना ‘भीमधारा’ नाम से जाना जाता है।

किवंदतियों के मुताबिक महाबली भीम ने द्रौपदी की प्यास बुझाने को तीर मारकर पहाड़ से इस पानी की धारा को निकाला था। मुखवा गांव धराली का पैदल रास्ता करीब एक किलोमीटर है। धराली में भागीरथी नदी के किनारे सेब के बागानों के बीच बनी टैण्ट कॉलोनियाँ लोगां का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। चूंकि हर्षिल इनर लाईन में पड़ने के कारण विदेशियों के लिए वर्जित है, इसलिए विदेशी सैलानी धराली में रात्रि विश्राम कर सकते हैं। हर्षिल और आस-पास के यह नजारे सैलानियों के लिए उम्र भर की यादगार बन जाते हैं। जो भी यहां आता है, यहां बिखरे बेशुमार प्राकृतिक सांदर्य की तारीफ करते नहीं थकता।

हर्षिल आने पर यहां से केवल 25 किलोमीटर की दूर पवित्र गंगोत्री धाम के दर्शन एक बोनस की तरह है। हर्षिल, धराली से भैंरो घाटी होकर गंगोत्री धाम पहुँचा जा सकता है। अप्रैल से नवम्बर तक यहाँ लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री पहुँचते हैं। गंगा नदी के इस उद्गम को काफी पवित्र माना जाता है। गंगोत्री दर्शन के बाद गंगोत्री और हर्षिल के बीच भैंरोघाटी में स्थित भैंरों मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं। यह पूरा क्षेत्र न केवल धार्मिक पहलू से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सुषमा से भी भरपूर है। ऐसे में यहाँ आने वालों के लिए ये एक अविस्मरणीय यात्रा होती है।

गौरतलब है कि गंगोत्री धाम के दर्शनों के लिए हर साल लाखों लोग तीर्थ यात्रा के लिए आते हैं, मगर गंगोत्री के बिल्कुल पास बसा हर्षिल पर्यटकों की निगाहों से अभी दूर ही है। उत्तराखण्ड सरकार और पर्यटन विभाग हर्षिल को पर्यटन मानचित्र में उल्लेखनीय दर्जा दिलाने को प्रयास कर रहे हैं। यहाँ गढ़वाल मण्डल विकास निगम के पर्यटक आवास गृह के अलावा निजी उद्यमियों द्वारा विकसित होटल सैलानियों को आवासीय सुविधाऐं प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा लोक निर्माण विभाग और वन विभाग के विश्रामगृह भी काफी खूबसूरत हैं। सैर-सपाटे में नयापन चाहिए तो हिमालय की गोद में बसे ‘हर्षिल’ से बेहतर कुछ और नहीं। यहां प्रकृति के मनमोहक सौंदर्य की छाप हमेशा के लिए दिलो-दिमाग पर चस्पा हो जाती है। यहाँ की यात्रा मन-मस्तिष्क को तरोताजा करने के साथ ही कुदरत के साथ इंसान के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने में कामयाब है।

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