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भाजपा नेताओं की पैरवी और जनता की नाराजगी: रामनगर पीपीपी अस्पताल पर उठा बड़ा सवाल
नैनीताल
रामनगर का पीपीपी मोड अस्पताल, जो पिछले चार सालों से अपनी कार्य प्रणाली के कारण विवादों और चर्चाओं में रहा है, अब पूरी तरह से वापस सरकारी होने जा रहा है। आठ अक्टूबर से सर्वम शुभम कम्पनी इसे स्वास्थ्य विभाग को हैंडओवर कर देगी। इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है और अस्पताल का अनुबंध 7 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगा।
यह वही अस्पताल है जिसे विश्व बैंक की मदद से प्रदेश के अन्य दो बड़े अस्पतालों के साथ पीपीपी मोड पर दिया गया था। अब, अनुबंध की समाप्ति के साथ, इस विवादित अस्पताल का सरकारीकरण हो जाएगा। विश्व बैंक से मिलने वाला अनुदान 31 दिसंबर 2024 तक ही रहेगा, उसके बाद यह अनुबंध समाप्त हो जाएगा। लेकिन रामनगर अस्पताल का अनुबंध पहले ही 7 अक्टूबर को खत्म हो रहा है, और सरकार ने पीपीपी संचालक को सख्त निर्देश दे दिए हैं कि वह इस तारीख से पहले अपने सभी स्टाफ को हटा ले और अस्पताल सरकार के हवाले कर दे।
चौंकाने वाली बात यह है कि भाजपा के कुछ स्थानीय नेता अनुबंध को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और पीपीपी संचालक के लिए पैरवी कर रहे हैं। यह वही संचालक है जो पहले भी कई बार नियमों और शर्तों के उल्लंघन का दोषी पाया गया है, और उसे जुर्माना भी भरना पड़ा है। इसके बावजूद, स्थानीय नेता इस भ्रष्ट और विफल मॉडल को जारी रखने की वकालत कर रहे हैं, जो जनता की स्वास्थ्य सेवाओं के साथ खिलवाड़ करने के बराबर है।
जनता में नाराजगी और गुस्सा बढ़ रहा है, क्योंकि पीपीपी मोड के तहत अस्पताल की सेवाएं हमेशा सवालों के घेरे में रही हैं। जनता को उम्मीद थी कि इस मॉडल के तहत स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा, लेकिन हकीकत में भ्रष्टाचार और लापरवाही ने इस अस्पताल को बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया। ऐसे में स्थानीय नेताओं का अनुबंध बढ़वाने के प्रयास पूरी तरह से जनता के साथ धोखा हैं। सरकार को अब अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इस अस्पताल को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेना चाहिए और जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करानी चाहिए।