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रामलीला मंच पर नेताओं का सियासी स्वयंवर – रामलीला कमेटी धनुष संभाले, नेता तीर चलाएँ!
रामलीला मंच पर नेताओं का सियासी स्वयंवर – रामलीला कमेटी धनुष संभाले, नेता तीर चलाएँ!
रामनगर।
आदर्श भवानीगंज रामलीला समिति के मंच पर बीती रात भगवान श्रीराम का स्वयंवर होना था। सीता जी को चुनने के लिए धनुष टूटना था, पर अफसोस… धनुष उठाने से पहले ही मंच पर नेताजी आ धमके और तीर चलाने लगे। फर्क बस इतना था कि ये तीर तर्क के नहीं, सियासत के थे।
मुख्य अतिथि विधायक दीवान सिंह बिष्ट और विशिष्ट अतिथि पूर्व नगर अध्यक्ष मदन जोशी को मंच पर बुलाया गया। दीप प्रज्वलन हुआ, शंखनाद हुआ और दर्शक सांस रोककर इंतजार करने लगे कि अब रामलीला शुरू होगी। पर असली नाटक तो यहीं से शुरू हुआ।
मदन जोशी की ‘भाषण रामायण’
पहली बारी आई भाजपा के पूर्व नगर अध्यक्ष मदन जोशी की। उन्होंने जैसे ही माइक पकड़ा, लगा मानो रामायण के पन्ने नहीं, भाजपा का चुनावी घोषणा पत्र खुल गया।
उन्होंने अवैध मजारें तोड़ने से लेकर लव जिहाद तक हर मुद्दे पर भाषण दे डाला। दर्शक सोचने लगे – भाई, ये रामलीला है या विधानसभा चुनाव की मीटिंग?
जोशी जी बोले – “मैं सनातन की रक्षा कर रहा हूं, इस काम में मेरी जान भी चली जाए तो परवाह नहीं।”
अब दर्शकों ने मन ही मन कहा – अरे महोदय! हमें तो बस सीता स्वयंवर देखना है, आपकी शहादत की स्क्रिप्ट बाद में लिख लीजिएगा।
इतना ही नहीं, उन्होंने बीच-बीच में जनता को याद दिलाया कि “पिछले साल विधायक जी से दस लाख रुपये दिलवाए थे रामलीला कमेटी को।”
यानि रामायण के पात्रों की जगह यहां ‘फंड’ ही असली नायक बन बैठा। कमेटी भी मन ही मन सोच रही होगी – रामायण तो हर साल होती है, लेकिन फंड वाला प्रसंग हर बार नया जोश भर देता है।
विधायक बिष्ट की ‘सियासी गीता’
मदन जोशी के बाद बारी आई विधायक दीवान सिंह बिष्ट की। उन्होंने भी कहा कि वह रामलीला कमेटी को आगे भी मदद देते रहेंगे। बस फर्क इतना कि उन्होंने रामलीला मंच से सीधा बिहार चुनाव की राजनीति जोड़ दी जहां PM को मां को गाली देने का मुद्दा उठा कर भाजपा चुनाव फतह करना चाहती हैं ।
उन्होंने विपक्ष के मंच से पीएम की मां को लेकर दिए गए बयान को मुद्दा बनाया और वही कथा सुनाई। अब जनता को लगने लगा कि भाई, सीता स्वयंवर देखने आए थे, बिहार चुनाव का ज्ञान क्यों झेल रहे हैं?
दर्शकों की हालत – ‘रामलीला देखने आए, भाषणलीला में फंस गए’
मंच पर लंबा भाषण चलता रहा। दर्शक कुर्सियों पर हिल-डुलकर कह रहे थे –
“हे प्रभु राम! आप तो धनुष तोड़ने में देर नहीं करते थे, पर ये नेता माइक तोड़ने में भी बाज नहीं आ रहे।”
बच्चे ऊबकर बर्फगोला खाने निकल गए, बुजुर्गों ने आंख मूंदकर ‘राम राम’ जपना शुरू कर दिया और महिलाओं ने बगल वालों से पूछ लिया – “बहन जी, सुबह उठना नहीं हैं क्या?”
क्योंकि भाषण इतना लंबा खिंच गया कि दर्शक सीता स्वयंवर भूलकर सांसारिक स्वयंवर में लौट आए।
रामलीला का मंच – भगवान कम, राजनीति ज़्यादा
रामलीला का असली मकसद है भगवान राम की मर्यादा, त्याग और आदर्श का संदेश देना। लेकिन यहां नेताओं ने रामलीला को भी अपना चुनावी मंच बना दिया।
जहां धनुष उठना था, वहां ‘फंड’ उठा। जहां राम-सीता का मिलन होना था, वहां नेताओं ने रामनाम में वोटबैंक का मेल कर दिया।
तंज:“रामलीला देखने आए थे, लेकिन नेताओं ने साबित कर दिया कि उनके लिए राम का नाम भी अब सिर्फ राजनीति की पांडुलिपि है।







