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सरकार ने खोलीं शराब की दुकानें, फिर खुद ही रोके… और महिला मोर्चा ने बजा दी ताली!
सरकार ने खोलीं शराब की दुकानें, फिर खुद ही रोके… और महिला मोर्चा ने बजा दी ताली!
रामनगर (नैनीताल)।
प्रदेश की भाजपा सरकार ने रामनगर विधानसभा क्षेत्र को ‘शराब मुक्त’ बनाने के बजाय ‘शराब युक्त’ करने की ऐसी पहल की कि चार नई दुकानों के उद्घाटन की तैयारी कर दी। और जैसे ही ग्रामीणों, खासकर महिलाओं ने इसके विरोध में आवाज़ उठाई—सरकार की पोल खुलने लगी।
गांव की महिलाएं दिन-रात विरोध में डटी रहीं। लेकिन भाजपा महिला मोर्चा की महिलाएं तब मौन व्रत में थीं—शायद उन्हें पार्टी के अनुशासन की दुहाई दी गई थी या संवेदनाएं सत्ता की गोद में कहीं सो गई थीं।
हैरत की हद तो तब हो गई, जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनता के भारी विरोध के बाद शराब की नई दुकानों का आवंटन फिलहाल रोकने का ऐलान कर दिया। और इस “अचानक आए ज्ञान” पर भाजपा महिला मोर्चा की महिलाएं तालियां पीटने लगीं, धन्यवाद ज्ञापन करने लगीं, और मुख्यमंत्री की ‘दूरदृष्टि’ की तारीफों के पुल बाँधने लगीं।
सवाल ये है — जब महिलाएं धरने पर थीं, तब महिला मोर्चा की नेता कहां थीं? क्या विरोध की जिम्मेदारी सिर्फ आम महिलाओं की है? और जब मुख्यमंत्री ने अपने ही फैसले को पलटा, तो उसकी वाहवाही करने की जिम्मेदारी सिर्फ पार्टी से जुड़ी महिलाओं की?
यह पहला मौका नहीं है जब भाजपा महिला मोर्चा ने सत्ता के सामने अपनी जुबान सिल ली हो। महिलाओं पर बढ़ते अपराध हों, या शराब के जहर से टूटते घर—जहां सरकार अपनी है, वहां मोर्चा मौन है।
कभी सड़क पर उतरने का साहस दिखाने वाली महिलाएं, आज सत्ता के सामने खामोश हैं।
रामनगर की महिलाओं ने जो साहस दिखाया, वह लोकतंत्र की असली ताकत है। उन्होंने बता दिया कि समाज के मुद्दे सिर्फ चुनावी भाषणों का हिस्सा नहीं, ज़मीनी हकीकत होते हैं।
लेकिन महिला मोर्चा की चुप्पी यह भी बता रही है कि जहां पार्टी की सरकार होती है, वहां इंसान नहीं, सिर्फ पार्टी वफादारी बोलती है।




