उत्तराखण्ड
भैंस के आगे बीन – बागजाला की जनता का अनोखा अंदोलन, सरकार की कुंभकर्णी नींद फिर भी बरकरार!
हल्द्वानी। उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार को जगाने के लिए बागजाला गांव के ग्रामीणों ने अब भैंस के आगे बीन बजाने का रास्ता चुना है। गांव के लोग अपनी 8 सूत्रीय मांगों को लेकर 21 दिन से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं, मगर सरकार और विधायक महोदय मानो नींद में ऐसे सो रहे हों जैसे सियासत का तकिया ही उनका स्थायी पता हो।
धरने के 21वें दिन ग्रामीणों ने साफ कहा कि जब लोकतंत्र के देवता कहलाने वाले जनप्रतिनिधि जनता की आवाज़ नहीं सुनते, तो हमें मजबूरन भैंस के सामने बीन बजानी पड़ रही है। उनका कटाक्ष साफ था—सरकार भैंस बन चुकी है और जनता बीन बजाकर उसे जगा रही है। लेकिन हैरत तो इस बात की है कि इतनी शोरगुल और नाराज़गी के बावजूद सत्ता की कुंभकर्णी नींद में कोई खलल नहीं पड़ा।
धरना स्थल पर वक्ताओं ने कहा कि बिंदुखत्ता से दमुआढुंगा तक मालिकाना हक़ देने की घोषणाएँ होती हैं, लेकिन बागजाला गांव आते ही सरकार को “सौतेला व्यवहार” याद आ जाता है। सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार की योजनाओं का नक्शा भी वोट बैंक देखकर बनता है?
मुकेश बौद्ध ने गरजते हुए कहा कि अगर सरकार ने अब भी कान बंद रखे तो आंदोलन और उग्र रूप लेगा। वहीं किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष आनन्द सिंह नेगी ने सरकार की कथनी और करनी का फर्क गिनाते हुए कहा—“वन भूमि और नजूल भूमि के नाम पर राजनीति चमकाई जा रही है, लेकिन हक़ मांगने वालों को नजरअंदाज किया जा रहा है।”
भीम आर्मी और भाकपा (माले) समेत कई संगठनों के नेताओं ने आंदोलन को समर्थन दिया। बड़ी संख्या में महिलाएं भी धरने में डटी रहीं। सूची इतनी लंबी है कि लग रहा था मानो पूरा गांव ही सत्ताधारी नेताओं को आइना दिखाने के लिए सड़क पर उतर आया हो।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर भैंस रूपी सरकार को जगाने में बीन भी नाकाम रही, तो अब अगला कदम ढोल-नगाड़े होंगे। यानी संदेश साफ है—“जनता जाग चुकी है, सरकार चाहे तो सोती रहे, लेकिन इस नींद की कीमत 2027 में चुनावी नतीजे बताएंगे।”
धरना फिलहाल जारी है, और सरकार की चुप्पी बताती है कि लोकतंत्र में जनता की बीन बजाने की बारी आ चुकी है।







