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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड के भविष्य पर मंथन: नैनीताल में वित्त आयोग की ऐतिहासिक बैठक, पर्यटन और उद्योग के लिए बड़े सुझाव सामने आए

नैनीताल, 21 मई 2025

उत्तराखंड के आर्थिक भविष्य और विकास की दिशा तय करने के लिहाज से बुधवार का दिन ऐतिहासिक रहा। भारत के 16वें वित्त आयोग ने नैनीताल के प्रतिष्ठित नमः होटल में राज्य के पर्यटन, उद्योग और व्यापार जगत के प्रतिनिधियों के साथ महत्वपूर्ण परामर्श बैठक आयोजित की। आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में हुई इस उच्चस्तरीय बैठक में आयोग की सदस्य एनी जॉर्ज मैथ्यू, मनोज पांडा, सौम्या कांति घोष सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।

बैठक में पर्यटन और उद्योग से जुड़े तमाम मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई और उत्तराखंड के हित में कई अहम सुझाव सामने आए। पर्यटन क्षेत्र से लेकर उद्योगिक विकास, आपदा प्रबंधन, परिवहन कनेक्टिविटी, वैलनेस टूरिज्म, एस्ट्रो टूरिज्म, MSME और ग्रीन बोनस जैसे विषयों पर प्रतिनिधियों ने अपना पक्ष मजबूती से रखा।

पर्यटन को मिला बड़ा फोकस

होटल एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के वेद प्रकाश साह ने नैनीताल और मसूरी जैसे प्रमुख हिल स्टेशनों को स्मार्ट और सतत पर्यटन शहर के रूप में विकसित करने का विज़न पेश किया। उन्होंने वर्षा जल संचयन, ठोस कचरा प्रबंधन, केबल कार ट्रांसपोर्ट और PPP मोड में पार्किंग जैसे सुझाव दिए। साथ ही उन्होंने इन हिल स्टेशनों के चारों ओर पर्यटन सर्किट विकसित करने की वकालत की ताकि राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।

नैनीताल होटल एसोसिएशन के दिग्विजय सिंह बिष्ट ने सड़क, रेल और हवाई संपर्क को बेहतर बनाने की मांग की और झीलों के संरक्षण के लिए विशेष फंड की आवश्यकता बताई।

एस्ट्रो-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए राम आशीष राय ने “डार्क नाइट ज़ोन” की अवधारणा रखी, जबकि ट्रेक द हिमालयास के राकेश पंत ने पारंपरिक धार्मिक ट्रेकिंग मार्गों के पुनरुद्धार पर जोर दिया। ओम कल्याण ग्रुप के सचिन त्यागी ने PPP मोड में कौशल विकास अकादमी की स्थापना की सिफारिश की।

टिहरी क्रूज़ के विजय सिंह बिष्ट ने झीलों में क्रूज़ पर्यटन की संभावनाओं को सामने रखा और दिल्ली से उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों तक रेलवे कनेक्टिविटी की मांग की।

उद्योग क्षेत्र ने खोले विकास के नए द्वार

इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ उत्तराखण्ड के पंकज गुप्ता ने ब्लॉक स्तर पर कौशल संस्थानों की स्थापना, आपदा बीमा कोष और लॉजिस्टिक पार्क जैसे प्रगतिशील सुझाव रखे। कुमाऊँ गढ़वाल चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अशोक बंसल ने राज्य में उद्योगों की लागत बढ़ने पर चिंता जताई और पुराने सब्सिडी मॉडल को फिर से लागू करने, कर छूट देने और ₹5000 करोड़ के विशेष औद्योगिक फंड की मांग की।

S.A.M.U के हरेंद्र गर्ग ने GST रिफंड की पारदर्शी व्यवस्था, राष्ट्रीय भवन संहिता में संशोधन और उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना पर बल दिया।

CII के हर्षित गुप्ता ने SEZ, DIC और MSME को आपदा नीति में शामिल करने का सुझाव दिया, जबकि लघु उद्योग भारती के राहुल देवदंड ने “हिल इंडेक्स”, “ग्रीन बोनस” और पहाड़ी राज्यों के लिए एक अलग मंत्रालय की मांग की।

व्यापारियों ने हिमालय बचाओ अभियान को दिया नया आयाम

प्रांतीय उद्योग व्यापार मंडल के नवीन वर्मा ने हिमालय के संरक्षण के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि हिमालयी नदियां भारत की जल व्यवस्था की रीढ़ हैं, जिनका संरक्षण देश के लिए अनिवार्य है। व्यापारियों को राहत देने के लिए परिवहन सब्सिडी, आपदा राहत पैकेज और पर्यावरणीय सहायता जैसे ठोस सुझाव सामने रखे गए।

आयोग का रुख और अगली राह

वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने सभी प्रतिनिधियों के विचारों के लिए धन्यवाद देते हुए भरोसा दिलाया कि उनके सुझावों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कई सुझाव राज्य और केंद्र सरकारों के दायरे में आते हैं, फिर भी आयोग हर पहलू को रिपोर्ट में समाहित करने की कोशिश करेगा। उन्होंने यह भी घोषणा की कि आयोग 31 अक्टूबर 2025 तक अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपेगा, जो सीमित कर राजस्व के न्यायपूर्ण वितरण को सुनिश्चित करेगी।

प्रशासनिक उपस्थिति भी रही प्रभावशाली

बैठक में सचिव वित्त दिलीप जावलकर, सचिव पर्यटन सचिन कुर्वे, कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत, जिलाधिकारी वंदना, अपर सचिव सोनिका व हिमांशु खुराना, मुख्य विकास अधिकारी अनामिका सहित उच्चाधिकारी व उद्यमी, व्यापारी और पर्यटन प्रतिनिधि उपस्थित रहे। संचालन महानिदेशक उद्योग प्रतीक जैन और अपर निदेशक पर्यटन पूनम चंद द्वारा किया गया।

नैनीताल में आयोजित यह ऐतिहासिक बैठक न केवल राज्य के आर्थिक विकास के लिए एक नया खाका तैयार करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुई, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि उत्तराखंड पर्यटन, उद्योग और पारिस्थितिक संतुलन के समन्वय से विकास की एक नई उड़ान भरने को तैयार है। अब निगाहें अक्टूबर में आने वाली आयोग की रिपोर्ट पर टिकी हैं, जिससे भविष्य की नीतियों की नींव तय होगी।

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