उत्तराखण्ड
रामनगर में “हिमालय दिवस” पर परिचर्चा: ग्लोबल वार्मिंग पर कविता संग्रह “सवाल क़ुदरत के” का विमोचन
रामनगर (नैनीताल)- हिमालय दिवस के अवसर पर रामनगर महाविद्यालय में एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसका मुख्य विषय था “हिमालय की दशा और दिशा”। इस अवसर पर चर्चित पर्यावरणविद् विपिन ध्यानी के ग्लोबल वार्मिंग पर लिखे काव्य संग्रह “सवाल क़ुदरत के” का भी विमोचन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उपजिलाधिकारी रामनगर राहुल शाह और मुख्य वक्ता अधीर कुमार, प्रोफेसर श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय, ऋषिकेश रहे। कुमार ने अपने उद्बोधन में कहा, “मनुष्य और प्रकृति के बीच का असंतुलन ही आज की सबसे बड़ी चुनौती है।” उन्होंने वीरेन डंगवाल की कविता का उल्लेख करते हुए कहा कि गंगा की समस्याएँ वास्तव में हिमालय की समस्याओं का प्रतिबिंब हैं।
अन्य वक्ताओं जैसे इमरान खान, डॉ हरेंद्र बरगली, सुमंता घोष, डॉ धनेश्वरी घिल्डियाल, संजय छिमवाल, वी एन शर्मा, संतोष मेहरोत्रा ने भी हिमालय के अंधाधुंध दोहन और पर्यावरणीय नीतिगत खामियों पर अपनी चिंता व्यक्त की। सभी ने एकमत होकर कहा कि “हिमालय है तो हम हैं” और इसके संरक्षण के बिना मानव अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
प्राचार्य डॉ एम सी पांडे ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिमालय की समस्याओं को “लोभ और अविवेकी दोहन का परिणाम” बताया। उन्होंने पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर देते हुए कहा कि इकॉनमी और इकोलॉजी दोनों का समान रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए।
विपिन ध्यानी के कविता संग्रह *”सवाल क़ुदरत के”* ने इस चर्चा के केंद्र में अपनी खास जगह बनाई। उनकी कविताओं में पर्यावरणीय संकट और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों का मार्मिक वर्णन किया गया है। उन्होंने अपनी इक्यावन कविताओं के माध्यम से मानव की कारगुजारियों का खुलासा करते हुए चेतावनी दी है कि समय रहते यदि हम नहीं संभले तो प्रकृति का कोप अमंगलकारी होगा।
इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के शिक्षकगण, क्षेत्र के प्रकृतिविद, पर्यावरण और वन्य जीव विशेषज्ञ, साहित्यकार, शिक्षाविद, और मीडिया जगत से जुड़े अनेक विशिष्ट व्यक्तियों ने भाग लिया। हिमालय संरक्षण की दिशा में यह परिचर्चा एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखी जा रही है।