उत्तराखण्ड
उत्तराखंड के डॉ. देवेश तिवारी विश्व के शीर्ष वैज्ञानिकों में शामिल
उत्तराखंड के डॉ. देवेश तिवारी विश्व के शीर्ष वैज्ञानिकों में शामिल
हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी एवं एल्सेवियर द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में शोध कर रहे विश्व के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची जारी की गई, जिसमें उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के डॉ. देवेश तिवारी का नाम भी शामिल है। यह उपलब्धि न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।
डॉ. तिवारी वर्तमान में दिल्ली फ़ार्मास्यूटिकल साइंसेज़ एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी (DPSRU), नई दिल्ली के फार्माकोग्नोसी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं एवं देश दुनिया के जाने माने फार्माकोग्नोसिस्ट हैं । डॉ तिवारी लगातार उत्तराखंड एवं हिमालयी राज्यों की औषधीय प्रजातियों पर अपना शोध कार्य कर रहे हैं। अब तक डॉ. तिवारी लगभग 150 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र प्रकाशित कर चुके हैं।
डॉ तिवारी का शोध मुख्यतः प्राकृतिक उत्पादों पर आधारित औषधि खोज (Natural Product Drug Discovery), एथ्नोफार्माकोलॉजी (Ethnopharmacology) और नवीन औषधि वितरण प्रणालियों (Novel Drug Delivery Systems) पर केंद्रित है। हिमालयी औषधीय पौधों, विशेषकर Diploknema butyracea (च्यूरा) और Rhododendron प्रजातियों पर आपका योगदान उल्लेखनीय है, जिससे उनके फाइटोकैमिकल प्रोफ़ाइल, औषधीय गुण और नैनोफॉर्मुलेशन्स पर महत्त्वपूर्ण दिशा मिली है।
आपके शोध कार्य के लिए आपको कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें UCOST का युवा वैज्ञानिक पुरस्कार, भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा सम्मान तथा फार्मेसी काउंसिल ऑफ़ इंडिया (PCI) से पुरस्कार शामिल हैं। डॉ. देवेश तिवारी कई राष्ट्रीय परियोजनाओं में Principal Investigator हैं। इनमें हिमालयी औषधीय पौधों की फाइटोकैमिकल प्रोफाइलिंग एवं जैवक्रियात्मक मूल्यांकन, नवीन नैनो-आधारित औषधि वितरण प्रणालियों का विकास जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं, जिनका उद्देश्य पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक औषधि विज्ञान से जोड़ना और ग्रामीण समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना है।
वर्तमान में डॉ तिवारी भारत सरकार की विभिन्न उच्च स्तरीय समितियों के सदस्य भी हैं, जहाँ औषधीय पौधों के वैज्ञानिक मूल्यांकन, नीति-निर्माण और अनुसंधान-औद्योगिक अनुप्रयोगों को दिशा देने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। आपके शोध ने न केवल शैक्षणिक जगत में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है, बल्कि ग्रामीण समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़ने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।







