उत्तराखण्ड
रामनगर में ‘ताले’ से खुला घमासान: पूर्व विधायक की भी FIR दर्ज!
एक ही मामले में दर्ज हुईं दो एफआईआर, कोतवाली पुलिस के रवैये पर उठे सवाल
रामनगर। शहर की राजनीति और व्यापारिक गलियारों में इन दिनों एक पुराने भवन को लेकर चल रहे विवाद ने तूल पकड़ लिया है। कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत ने कोतवाली पुलिस को शिकायती पत्र देकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनकी शिकायत पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 329(4), 351(2) और 352 के तहत मुकदमा दर्ज किया है। हैरानी की बात यह है कि इसी विवाद को लेकर कारोबारी नीरज अग्रवाल ने भी पूर्व विधायक और उनके समर्थकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है।
पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत का आरोप है कि रानीखेत रोड पोस्ट ऑफिस के पास स्थित जिस भवन में वर्ष 2016 से उनका कार्यालय और कांग्रेस कार्यालय संचालित है, वहां बीती रात कुछ अराजक तत्वों ने जबरन घुसपैठ की, गाली-गलौच और जान से मारने की धमकियां दीं। शिकायत में कहा गया है कि रात करीब 8:30 बजे कार्यालय बंद कर केयरटेकर घर गया था, लेकिन सुबह 9 बजे जब कार्यकर्ता पहुंचे तो दरवाजा अंदर से बंद मिला। जब आवाज देने और धक्का देने पर अंदर मौजूद व्यक्ति ने गालियां दीं और धमकाया, तो दरवाजे पर ताला लगाया गया।
रणजीत रावत का आरोप है कि कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंची और उन्हें तथा अन्य कार्यकर्ताओं को दरवाजे से हटाकर दूसरी ओर बैठने को कहा। उसके बाद पुलिस की मौजूदगी में कार्यालय के मुख्य गेट पर लगा ताला तोड़ दिया गया। शिकायत में कहा गया है कि यह घटना न सिर्फ पूर्व विधायक के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध रही है।
पूर्व विधायक की शिकायत में साफ तौर पर कहा गया है कि पुलिस की मौजूदगी में ताला तोड़ना, जबरन कार्यालय में घुसना और जान से मारने की धमकी देना गंभीर अपराध हैं, जिन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने ताला तोड़ने वालों और गाली-गलौच करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
हालांकि इस मामले में मोड़ तब आया जब कारोबारी नीरज अग्रवाल ने भी इसी विवाद के संबंध में रणजीत रावत और उनके समर्थकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। इससे मामला दो तरफा हो गया है और अब पुलिस पर निष्पक्ष कार्रवाई को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
राजनीतिक रसूख बनाम पुलिस की निष्पक्षता
इस घटनाक्रम ने कोतवाली पुलिस की कार्यप्रणाली को कठघरे में ला खड़ा किया है। पूर्व विधायक द्वारा लगाए गए आरोप इस ओर इशारा करते हैं कि पुलिस ने एक पक्षीय कार्रवाई की और मौके पर मौजूद होने के बावजूद उनके कार्यालय के ताले को तोड़ने की इजाजत दी। यह देखना बाकी है कि पुलिस अब किस तरह की कार्रवाई करती है और दोनों एफआईआर को लेकर क्या निष्कर्ष निकलता है।
भविष्य की राजनीति पर असर तय
इस विवाद का असर केवल कानून तक सीमित नहीं रहेगा। पूर्व विधायक की छवि, कांग्रेस संगठन की साख और कारोबारी वर्ग में संदेश—इन सभी पर इस घटनाक्रम का सीधा असर पड़ेगा। रानीखेत रोड पर स्थित यह विवादित भवन अब सिर्फ एक संपत्ति नहीं, बल्कि राजनीति और पुलिस व्यवस्था की पारदर्शिता का आईना बन गया है।
अब निगाहें पुलिस की अगली कार्रवाई पर
जिस तरह से एक ही मामले में दोनों पक्षों ने एफआईआर दर्ज कराई है, उससे साफ है कि मामला गंभीर है और इसकी निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी है। क्या कोतवाली पुलिस बिना किसी दबाव के दोनों पक्षों के आरोपों की समान रूप से जांच करेगी, या फिर राजनीतिक रसूख कानून पर भारी पड़ेगा—यह आने वाला वक्त बताएगा।







