उत्तराखण्ड
“रामनगर में कब्जा नहीं, सत्ता की मिलीभगत का पर्दाफाश हुआ है!”
रामनगर में सरकारी ज़मीन पर कब्जे का ‘सत्ता-संरक्षित’ खेल
– एटम बम न्यूज़ डेस्क, रामनगर
उत्तराखंड में मौजूदा सरकार एक अजीब किस्म की बहादुरी दिखा रही है — जहां मजारें हों, वहां बुलडोजर दहाड़ते हैं; और जहां रसूखदार हों, वहां सिस्टम बिछ-बिछ जाता है। “लैंड जिहाद पर कार्रवाई” का डंका बजाने वाली सरकार की बहादुरी रामनगर में नज़र नहीं आई, जहां एक सरकारी संपत्ति पर खुलेआम कब्जा कर सत्ता और सिस्टम की मिलीभगत से खेल खेला गया।
रामनगर में पोस्ट ऑफिस के पास, रानीखेत रोड पर मौजूद सरकारी नजूल संपत्ति का किस्सा किसी क्राइम थ्रिलर से कम नहीं है। कई दशक पहले यह ज़मीन लक्ष्मीनारायण, जयनारायण और ओमनारायण – तीन भाइयों को राज्य सरकार ने 90 साल की लीज पर दी थी। समय के साथ लीज की अवधि खत्म हो गई, और लीज का नवीनीकरण भी नहीं हुआ। यानी अब यह ज़मीन पूरी तरह से सरकार की संपत्ति थी। लेकिन…
फिर एंट्री होती है नीरज अग्रवाल की — जो तीन भाइयों में से एक के बेटे हैं।
लीज तीनों भाइयों के नाम थी, यानी अगली पीढ़ी में हर भाई के हिस्से से गिनें तो नीरज अग्रवाल इस संपत्ति में मात्र 1/9 हिस्सेदार हैं। लेकिन नीरज ने खुद को पूरा मालिक मान लिया और पूरी ज़मीन को केरोसिन के गोदाम में तब्दील कर डाला। केरोसिन सप्लाई का सरकारी काम मिला, और रसूख बढ़ता चला गया।
लेकिन खेल यहीं खत्म नहीं होता।
नीरज अग्रवाल ने इस संपत्ति पर पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत को बतौर कांग्रेस पार्टी कार्यालय खोलने के लिए ‘किराये’ पर दे दिया। और जब रणजीत सिंह सत्ता में थे, तो नीरज अग्रवाल मुश्किल वक्त में उनकी मदद लेता। लेकिन सत्ता बदली, समीकरण बदले और अब नीरज और रणजीत आमने-सामने आ गए।
अब आता है सत्ता संरक्षित कब्जा दिलाने का असली ड्रामा!
नीरज ने पार्टी कार्यालय खाली कराने के लिए उत्तर प्रदेश के रामपुर से भाड़े के गुंडे बुलवाए, और प्रशासन ने चुपचाप सब कुछ होने दिया। पुलिस न सिर्फ मूकदर्शक रही, बल्कि कब्जा छुड़ाने और कब्जा दिलाने में खुद दलाल की भूमिका में दिखी। होना तो यह चाहिए था कि जब मामला विवादित है, तब प्रशासन उस संपत्ति को सील कर देता, लेकिन नहीं… सिस्टम पूरी ताकत से नीरज के पक्ष में खड़ा दिखा। मानो आदेश देहरादून से आया हो — और उत्तराखंड में देहरादून से बिना “मोटी डील” के कोई आदेश आता भी नहीं!
अब जब हाईकोर्ट ने फटकार लगाई, तब जाकर राज्य सरकार और नगर पालिका को जागने की याद आई है।
ज्योलीकोट निवासी प्रेम बिष्ट की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने साफ निर्देश दिए हैं — नीरज अग्रवाल को नोटिस जारी कर उसका अवैध कब्जा हटाया जाए। याचिका में खुलासा किया गया कि रामनगर कांग्रेस कार्यालय को खाली कराने के बाद बिना किसी वैध प्रक्रिया के वह संपत्ति नीरज अग्रवाल को दे दी गई — वह भी उपजिलाधिकारी के स्तर पर!
अब सवाल यह है कि…
- क्या इसी तरह सरकारी ज़मीनें रसूखदारों की जेब में जाएंगी?
- क्या उत्तराखंड में कब्जा छुड़ाने और कब्जा दिलाने का नया ‘ठेका’ प्रशासन ने ले लिया है?
- क्या “लैंड जिहाद” का नारा सिर्फ कमजोरों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलता है, जबकि रसूखदारों के आगे सिस्टम घुटने टेक देता है?
सरकार को तय करना होगा कि उसका बुलडोजर सभी के लिए चलेगा या सिर्फ चुनावी स्टंट के लिए।
रामनगर की यह कहानी सिर्फ एक कब्जे की नहीं, सिस्टम के सड़ चुके चरित्र की तस्वीर है।
और यह तस्वीर… बहुत डरावनी है।
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