उत्तराखण्ड
रामनगर में निकाय चुनाव: पीपीपी मोड का अस्पताल बना भाजपा के लिए सिरदर्द
रामनगर। प्रदेश में निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है और सभी दल अपनी ताकत झोंकने में जुटे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए रामनगर का निकाय चुनाव एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जहां पार्टी के रणनीतिकार स्थानीय निकाय पर पहली बार भगवा लहराने की योजना बना रहे थे, वहीं रामनगर के सरकारी अस्पताल को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड में दिए जाने का मुद्दा पार्टी के लिए बड़ी बाधा बनकर उभरा है।
पीपीपी मोड और जनता का आक्रोश
रामनगर का रामदत्त जोशी सरकारी चिकित्सालय क्षेत्र की जनता के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं का एकमात्र केंद्र है। कोविड काल से पहले इस अस्पताल को पीपीपी मोड में दिया गया था। लेकिन इस निर्णय के बाद अस्पताल की व्यवस्थाएं बदतर हो गईं। दवाओं की कमी, स्टाफ की अनुपलब्धता और इलाज में देरी ने जनता के आक्रोश को हवा दी।
जनता की लगातार मांग और विपक्षी दलों के दबाव के चलते भाजपा विधायक महंत दिलीप सिंह रावत तक इस मुद्दे पर खुलकर बोले और अस्पताल को पीपीपी मोड से हटाने की वकालत की। हाल ही में मर्चुला हादसे में घायल लोगों के इलाज में आई अराजकता ने इस मुद्दे को और गर्मा दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत को उस समय तीखे विरोध का सामना करना पड़ा, जब घायलों के इलाज में अस्पताल की खामियां सामने आईं।
स्वास्थ्य मंत्री ने जनता को आश्वस्त किया था कि 31 दिसंबर के बाद इस अस्पताल को पीपीपी मोड से हटा लिया जाएगा। लेकिन जनवरी की शुरुआत में सरकार ने इस अनुबंध को तीन महीने के लिए बढ़ा दिया, जिससे जनता के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया गया।
भाजपा प्रत्याशी मदन जोशी पर बढ़ा दबाव
भाजपा के पालिकाध्यक्ष प्रत्याशी मदन जोशी इस मुद्दे के केंद्र में आ गए हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक दस्तावेज में उन्हें पीपीपी मोड के अस्पताल के प्रतीक सिंह के साथ मुख्यमंत्री से मुलाकात करते हुए दिखाया गया। इस घटना ने जनता में यह धारणा बना दी कि भाजपा नेता पीपीपी मोड का अनुबंध बढ़ाने की पैरवी कर रहे थे।जनता का आक्रोश अब भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ खुलकर सामने आ रहा है। अन्य विपक्षी प्रत्याशी इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। स्थानीय स्तर पर भाजपा के भीतर भी इस मुद्दे ने विभाजन की स्थिति पैदा कर दी है। पार्टी के कई कार्यकर्ता पहले ही टिकट वितरण को लेकर असंतोष जता चुके हैं।
बगावत और नशे-जुए के आरोपों ने बढ़ाई मुश्किलें
पार्टी के भीतर बगावत ने पहले ही भाजपा की चुनावी रणनीति को कमजोर किया है। मदन जोशी के खिलाफ पूर्व भाजपा नेता नरेंद्र शर्मा का मैदान में उतरना पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है। शर्मा न केवल चुनावी प्रचार में जुटे हैं, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से विधायक और भाजपा प्रत्याशी पर हमलावार हैं।इसके अलावा, रामनगर में बढ़ते नशे और जुए के संरक्षण के आरोपों ने भी भाजपा प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इन मुद्दों ने न केवल स्थानीय जनता के बीच नाराजगी बढ़ाई है, बल्कि पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंचाया है।
चुनाव प्रचार में विपक्ष का हथियार बना पीपीपी मोड का अस्पताल
रामनगर का सरकारी अस्पताल अब विपक्ष के लिए भाजपा को घेरने का सबसे मजबूत हथियार बन गया है। हर बीतते दिन के साथ यह मुद्दा भाजपा प्रत्याशी की चुनावी नैया को और डगमगाता जा रहा है। विपक्षी प्रत्याशी जनता के बीच यह संदेश पहुंचाने में सफल हो रहे हैं कि भाजपा ने क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं के साथ खिलवाड़ किया है।
भाजपा के लिए बड़ा सवाल
रामनगर नगर पालिका पर पहली बार कब्जा जमाने की भाजपा की योजना पर इस मुद्दे ने बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। पार्टी के रणनीतिकारों के लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि जनता के गुस्से को कैसे शांत किया जाए और बगावत के स्वर कैसे दबाए जाएं।
चुनावी नतीजों पर पड़ेगा गहरा असर
निकाय चुनाव में भाजपा की यह चुनौती केवल रामनगर तक सीमित नहीं है। अगर यह मुद्दा बड़े स्तर पर उभरता है, तो प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। भाजपा को अपनी छवि बचाने और जनता का भरोसा जीतने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
क्या भाजपा इस चुनौती से पार पाते हुए पहली बार रामनगर नगर पालिका में अपनी जीत दर्ज कर पाएगी? या फिर पीपीपी मोड का यह अस्पताल पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर देगा? इन सवालों का जवाब चुनावी परिणाम देंगे।