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उत्तराखण्ड

नफरत की सियासत के जाल में जनता को उलझा कर “वोट लूट” की योजना!

रामनगर में चुनावी खेल: जब डर और धर्म बने हथियार

रामनगर, उत्तराखंड: नगर पालिका चुनाव के मैदान में इस बार मुद्दों का नहीं, बल्कि डर और धर्म का बोलबाला है। जहां एक ओर विकास के सवाल गायब हैं, वहीं दूसरी ओर, नफरत और विभाजन की राजनीति का खेल अपने चरम पर है। रामनगर की राजनीति इस बार यह सवाल खड़ा कर रही है – क्या जनता अपनी आंखें खोलकर वोट डालेगी, या फिर डर और नफरत की इस सियासत के जाल में उलझ जाएगी?

डर की राजनीति के खिलाड़ी

रामनगर के चेयरमैन पद की कुर्सी पर काबिज होने के लिए उम्मीदवारों ने धर्म और डर को अपना मुख्य हथियार बना लिया है। मुद्दे जैसे सड़कें, पानी, सफाई, स्वास्थ्य, नजूल भूमि का नियमतिकरण और रोजगार अब सियासी बहसों से गायब हो चुके हैं। इनकी जगह ले ली है धार्मिक ध्रुवीकरण ने। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदायों के बीच भय का माहौल बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया जा रहा है।एक दिन दहाड़े बहुसंख्यको को डराकर उनके वोट को “लूटने’ की योजना बना रहा हैँ तो दूसरा रात के अँधेरे में अल्पसंख्यकों को डराने की कोशिश कर रहा हैँ.धर्म की आड़ लेकर “वोट के लुटेरों” ने लूट के लिए इलाके तय किये हुए हैँ.

हाजी अकरम: चार बार का अनुभव, पर नतीजा शून्य

चार बार चेयरमैन रहे हाजी अकरम एक बार फिर मैदान में हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि उनके लंबे कार्यकाल में रामनगर की तस्वीर क्यों नहीं बदली? इस बार, चुनाव जीतने के लिए हाजी अकरम धर्म का सहारा ले रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पक्ष में एकजुट करने के लिए वे डर और भावनात्मक अपील का इस्तेमाल कर रहे हैं।

मदन जोशी: नफरत की राजनीति का दूसरा चेहरा

दूसरी ओर, भाजपा के उम्मीदवार मदन जोशी ने भी नफरत और डर की राजनीति को अपनाया है। उनका प्रचार अल्पसंख्यक समुदाय को ‘खतरा’ बताने पर केंद्रित है। उनकी रैलियों में विकास के मुद्दों की जगह धार्मिक बयानबाजी हावी है। रामनगर के बहुसंख्यक समुदाय के भीतर भय का माहौल पैदा करने की कोशिश हो रही है ताकि उनके पक्ष में वोट डाले जाएं।

जनता के असल मुद्दे गायब

रामनगर की जनता के असल मुद्दे चुनावी चर्चा से गायब हैं। नजूल की जमीन पर बसे 75% परिवारों के मालिकाना हक का सवाल हो, या कचरा प्रबंधन की बदहाल स्थिति, या फिर युवाओं को रोजगार देने की योजनाएं – इन मुद्दों पर कोई बात नहीं कर रहा। जनता को धर्म और डर के नाम पर भटकाया जा रहा है।

विकास बनाम विभाजन का चुनाव

रामनगर के इस चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह सिर्फ एक चेयरमैन चुनने का मामला नहीं है। यह चुनाव रामनगर के भविष्य की दिशा तय करेगा। क्या जनता विभाजन की राजनीति को नकारकर विकास को चुन पाएगी? या फिर नफरत और डर का यह खेल जारी रहेगा?

जनता के नाम संदेश

रामनगर की जनता को इस बार सोचना होगा कि वे अपने बच्चों के भविष्य को किसके हवाले करना चाहते हैं। धर्म और नफरत की राजनीति करने वाले नेता क्या आपके असल मुद्दों को सुलझा पाएंगे? यह चुनाव सिर्फ एक मौका है – सही सवाल पूछने और सही फैसले लेने का।

रामनगर का यह चुनाव विकास और विभाजन के बीच की जंग है। जनता को तय करना होगा कि वे अपने वोट का इस्तेमाल नफरत और डर के नाम पर करेंगे, या अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए।

 

 

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