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उत्तराखण्ड

रामनगर:PPP मोड का खेल खत्म – CMO ने भेजे डॉक्टर, कल निजी कंपनी से वापस ले लिया जाएगा अस्पताल!

PPP मोड का खेल खत्म – अब सरकारी होगा रामदत्त जोशी अस्पताल

रामनगर।
रामनगर के रामदत्त जोशी अस्पताल से अब PPP मोड का ग्रहण हटने जा रहा है। 1 अप्रैल से इस अस्पताल का संचालन पूरी तरह से स्वास्थ्य विभाग के हाथों में आ जाएगा। डॉक्टरों और नर्सों की तैनाती शुरू हो चुकी है। यानी अब अस्पताल का जिम्मा निजी कम्पनी नहीं बल्कि सरकार के हाथ में होगा।

चार साल पहले इस अस्पताल को ‘सर्वम शुभम’ नाम की निजी कम्पनी को विश्व बैंक की फंडिंग के जरिये चलाने के लिए सौंपा गया था। लेकिन दिसंबर में विश्व बैंक ने फंडिंग बंद कर दी। इसके बाद तीन महीने की अतिरिक्त मोहलत मिली, लेकिन तब से इस मॉडल के खिलाफ जनता का गुस्सा उबाल पर था।

जनता बोली – नहीं चाहिए निजी अस्पताल

PPP मोड को हटाने की मांग सिर्फ विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ता भी कर रहे थे। लेकिन स्थानीय विधायक दीवान सिंह बिष्ट और नगर अध्यक्ष मदन जोशी ने निजी कम्पनी के पक्ष में बैटिंग कर इस मॉडल को आगे बढ़वा दिया। यही कारण रहा कि नगर पालिका चुनाव में यह मुद्दा भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गया।

अब ब्रेक लगेगा प्राइवेट मॉडल पर

जनता के दबाव और शिकायतों की झड़ी को देखते हुए अब प्रशासन ने PPP मोड पर ब्रेक लगाने का मन बना लिया है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. हरीश पंत ने बताया कि 1 अप्रैल से डॉक्टरों की ड्यूटी लगा दी गई है। अस्पताल में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर, सर्जन, नेत्र रोग विशेषज्ञ, ENT स्पेशलिस्ट, गायनोकोलॉजिस्ट समेत दर्जनों स्टाफ नर्सें तैनात होंगी।

“अस्पताल चलाने को तैयार हूं” – CMS डॉ. टम्टा

अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विनोद टम्टा ने ‘एटम बम’ को बताया कि वे सरकारी संचालन के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वैकल्पिक व्यवस्थाएं शुरू कर दी गई हैं और जिला प्रशासन से स्टाफ व संसाधनों के लिए अनुरोध किया गया है।

अब असली लड़ाई शुरू – अस्पताल को चाहिए विस्तार

सरकारी हाथ में संचालन आने के बाद असली चुनौती अब बेहतर सुविधाओं की है। रामनगर जैसे शहर को सिर्फ 70 बिस्तरों वाला अस्पताल नहीं, बल्कि कम से कम 200 बिस्तरों की व्यवस्था चाहिए। यहां केवल रामनगर नहीं, बल्कि पौड़ी गढ़वाल, अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों के दूर-दराज के लोग इलाज के लिए आते हैं।

रेफर सेंटर नहीं, चाहिए ट्रॉमा सेंटर

अभी तक यह अस्पताल एक रेफर सेंटर बनकर रह गया है। पहाड़ी क्षेत्रों में आए दिन दुर्घटनाएं होती हैं, ऐसे में यहां एक आधुनिक ट्रॉमा सेंटर बनाना बेहद जरूरी है।

नतीजा साफ है – जनता ने दबाव बनाया, सरकार झुकी। अब जिम्मेदारी प्रशासन की है कि वो इस अस्पताल को केवल नाम का सरकारी न बनाए, बल्कि इसे वास्तव में जनता के स्वास्थ्य की ढाल बनाए।

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