उत्तराखण्ड
धान रोपने के बाद जंगल में सफारी – उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का ‘फोटो सेशन’ फार्म टू फॉरेस्ट!
धान रोपने के बाद जंगल में सफारी – उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का ‘फोटो सेशन’ फार्म टू फॉरेस्ट!
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इन दिनों “धरती पुत्र” से लेकर “वनवासी अभियानकर्ता” तक के किरदार बखूबी निभा रहे हैं — वो भी कैमरे के लिए!
कल सोशल मीडिया पर खेत में हल चलाते, घुटनों तक कीचड़ में धान की रोपाई करते मुख्यमंत्री की तस्वीरें वायरल हुईं। तस्वीरें ऐसी कि मानो एकदम किसानों के दु:ख-दर्द के साथी हों। मिट्टी में लथपथ मुख्यमंत्री जी को देखकर कुछ समर्थक गदगद हो गए और उन्हें आदर्श किसान, धरतीपुत्र और भारत का ‘नया लाल बहादुर शास्त्री’ तक कह बैठे।
लेकिन मामला यहीं नहीं रुका।
अगले ही दिन रामनगर के कॉर्बेट पार्क से मुख्यमंत्री जी की एक और अवतार वाली तस्वीर सोशल मीडिया पर तैरती नजर आई — इस बार फॉरेस्ट ड्रेस में जंगल सफारी का आनंद लेते हुए। कैमरा फ्रेंडली पोज़, जीप पर बैठकर वन्यजीवों की खोज, और बैकड्रॉप में हरियाली — सब कुछ परफेक्ट फ्रेम में।
अब भला सोशल मीडिया कैसे चुप रहता?
कुछ लोगों ने तंज कसते हुए लिखा –
“भारत का पहला ऐसा किसान, जो धान की रोपाई करके थकान मिटाने हेलीकॉप्टर से रामनगर के रिसॉर्ट पहुंचता है और अगली सुबह फॉरेस्ट ड्रेस पहनकर जंगल घूमने निकल पड़ता है!”
एक यूजर ने कहा –
“साहब खेत में उतरे नहीं, उतारे गए थे। कैमरा ऑन था, कीचड़ सेट था, और कैप्शन पहले से लिखा हुआ!”
वहीं कुछ व्यंग्यकारों ने इसे “फोटो सेशन फार्म टू फॉरेस्ट” करार देते हुए पूछा –
“मुख्यमंत्री जी, अगले हफ्ते क्या योजना है? नदी में जाल डालकर मछली पकड़ते नजर आएंगे या खड़ाऊ पहनकर ऋषिकेश में प्रवचन देते?”
राजनीतिक विरोधियों ने इसे सीधे “पब्लिसिटी स्टंट” बताया और पूछा कि आखिर खेत में हल चलाने और जंगल सफारी करने से राज्य की बेरोजगारी, पलायन और खराब स्वास्थ्य सेवाओं पर कितना असर पड़ा?
लेकिन एक बात माननी पड़ेगी — मुख्यमंत्री जी सोशल मीडिया की नब्ज समझ चुके हैं। अब वो न सिर्फ घोषणाएं करते हैं, बल्कि हर लुक और मूड के साथ एक नया ‘नरेटिव’ भी तैयार कर लेते हैं — कभी किसान, कभी पर्यावरण प्रेमी और कभी टाइगर रिज़र्व के रक्षक।
उत्तराखंड की राजनीति अब खेत-खलिहान और जंगल-सफारी के बीच झूलती नजर आ रही है — फर्क बस इतना है कि असली किसान आज भी कई परेशानियों की बाट जोह रहा है और जंगल अब भी माफिया के डर से कांप रहा है।
कहने वाले कह रहे हैं:
“मिट्टी में पांव भिगो लेने से किसान नहीं बना जाता, और कैमरे में खाकी पहन लेने से जंगल नहीं बचता!”
अब देखना ये है कि अगली फोटो में मुख्यमंत्री किस नई भूमिका में नज़र आएंगे.







