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“जेल नहीं, सिर्फ़ समझाइश… इसी भ्रम ने बना दिया बाइक चोर गैंग! देहरादून में 4 नाबालिग और एक युवक चोरी की राह पर”

“जेल नहीं, सिर्फ़ समझाइश… इसी भ्रम ने बना दिया बाइक चोर गैंग! देहरादून में 4 नाबालिग और एक युवक चोरी की राह पर”


देहरादून (प्रेमनगर) | एटम बम न्यूज़
महंगे मोबाइल, स्टाइलिश कपड़े और खाने-पीने का शौक… और ये सोच कि “नाबालिग होने के कारण पुलिस कुछ नहीं कर सकती।” बस, इन्हीं दो वजहों ने देहरादून के कुछ किशोरों को अपराध की राह पर धकेल दिया। नतीजा—एक नाबालिगों का बाइक चोर गैंग तैयार हो गया, जिसने अलग-अलग थाना क्षेत्रों से बुलेट और स्प्लेंडर बाइकें चुराकर बेचने की साजिश रची।

प्रेमनगर, नेहरू कॉलोनी और आसपास के इलाकों से चोरी गई 4 मोटरसाइकिल—जिसमें तीन बुलेट और एक स्प्लेंडर शामिल है—पुलिस ने बरामद की हैं। इस गिरोह में 4 नाबालिग और 1 बालिक (20 वर्षीय) युवक शामिल था। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से तीन नाबालिग पूर्व में भी वाहन चोरी के मामलों में पकड़े जा चुके हैं, लेकिन “बच्चे हैं” कहकर घर भेज दिए गए। अब वही बच्चे एक संगठित बाइक चोर गैंग चला रहे थे।

‘पकड़े नहीं जाएंगे’ के過भ्रम में गहरी फिसलन

पूछताछ में इन किशोरों ने जो बताया, वह समाज और अभिभावकों—दोनों के लिए बड़ा संदेश है। उन्होंने साफ कहा कि वे जानते थे कि “पुलिस नाबालिगों को जेल नहीं भेजती, बस डांट-फटकार कर घर छोड़ देती है।” इसी भ्रम ने उन्हें निर्भय बना दिया। उनके लिए अब अपराध एक खेल बन गया था—रात में रेकी करो, पुरानी बुलेट चोरी करो, नंबर प्लेट हटा दो और बेचने की फिराक में रहो।

इन किशोरों को अच्छी तरह मालूम था कि पुरानी बुलेट मोटरसाइकिलें मास्टर चाबी से आसानी से स्टार्ट हो जाती हैं और उनके पार्ट्स आसानी से बिक जाते हैं। वे बाइकें चुराकर सहारनपुर और मुज़फ्फरनगर ले जाना चाहते थे, लेकिन सघन चेकिंग के कारण उन्हें बाहर ले जाने का मौका नहीं मिला।

रात का गैंग, दिन का मासूम चेहरा?

इस गैंग के सदस्य रात में घूमते थे, रेकी करते थे और चोरी की घटनाओं को अंजाम देते थे। नंबर प्लेट हटाने और पहचान छुपाने का तरीका भी उन्होंने सीख लिया था। चोरी के लिए उन्होंने जानबूझकर बिना नंबर वाली बाइकें चुनीं, जिससे जल्द पहचान न हो।

गिरफ्त में आया युवक यश शर्मा पुत्र बृजेश शर्मा (निवासी क्लेमेंटाउन) 20 वर्ष का है, जिसे न्यायालय ने जेल भेज दिया है। वहीं 4 नाबालिगों को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश कर बाल सुधार गृह भेजा गया है।


बड़ा सवाल: ये ‘शौक़ीन अपराधी’ कौन गढ़ रहा है?

  • क्या नाबालिग कानून का दुरुपयोग करके अपराधियों की नई पौध बन रहे हैं?
  • क्या समाज और अभिभावक अपने बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान नहीं दे रहे?
  • क्या ‘महंगे शौक’ पालने के लिए बच्चों में अपराध को विकल्प मानने की प्रवृत्ति बढ़ रही है?

यह घटना सिर्फ चोरी नहीं, हमारे सामाजिक तानेबाने, पालन-पोषण और कानून की संरचना पर सवाल है।


अब जरूरी है—सिर्फ अपराधियों को पकड़ना नहीं, बल्कि इस मानसिकता को पकड़ना। वरना ‘बाल सुधार गृह’ सिर्फ नाम रहेगा, और अपराध उम्र की सीमाओं को पार करता जाएगा।


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