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उत्तराखण्ड

पत्रकार पर हमला… उक्रांद का ‘क्रांति सम्मेलन’ बना ‘हिंसा सम्मेलन’, अब FIR के शिकंजे में दल के “गुंडे”

पत्रकार पर हमला… उक्रांद का ‘क्रांति सम्मेलन’ बना ‘हिंसा सम्मेलन’, अब FIR के शिकंजे में दल के गुंडे!

रामनगर।
उत्तराखंड क्रांति दल — नाम में क्रांति, काम में गुंडागर्दी! पत्रकारिता की कवरेज पर यह दल इस कदर बौखला गया कि कैमरे और सच्चाई दोनों पर हमला कर बैठा। पत्रकार गोविंद पाटनी के साथ अभद्रता, मारपीट और धमकी का मामला अब पुलिस तक पहुंच चुका है, और उक्रांद के कथित कार्यकर्ता अब गंभीर धाराओं में फंसे हैं।

रावत गार्डन, बसई में चल रहे उक्रांद के द्विवार्षिक सम्मेलन में जब चुनावी घमासान मचा तो सियासी नूरा-कुश्ती को कैद करने पहुंचे पत्रकारों पर ही यह तथाकथित “जनसेवक” टूट पड़े। 30-40 कार्यकर्ताओं की भीड़ ने न केवल पत्रकार का मोबाइल छीना, बल्कि वीडियो डिलीट कराने के लिए उसे कमरे में घसीट ले गए। धमकी दी गई — “वीडियो डिलीट नहीं किया तो अंजाम भुगतोगे।”
यानी, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की कवरेज करने की कीमत अब धमकी और हिंसा से चुकानी पड़ रही है!

पुलिस ने पत्रकार की तहरीर पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 309(4), 324(2), 352 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। लेकिन सवाल यह है — कब तक ये ‘राजनीतिक गुंडे’ पत्रकारिता की आज़ादी पर हमला करते रहेंगे और प्रशासन मूकदर्शक बना रहेगा?

घटना के बाद पत्रकारों में गुस्सा है। उन्होंने साफ चेतावनी दी है — अगर आरोपियों की गिरफ्तारी जल्द नहीं हुई, तो सड़कों पर आंदोलन होगा।
यानी अब “कलम बनाम लाठी” की लड़ाई रामनगर की सड़कों तक पहुंचेगी।

उक्रांद के मंच से लोकतंत्र की बात करने वाले नेता अब अपने ही कार्यकर्ताओं की करतूत पर चुप हैं। सवाल उठता है —
क्या यही है “उत्तराखंड की क्रांति”?
या फिर यह दल अब जनता के भरोसे और पत्रकारिता दोनों से खेल रहा है?

सच्चाई पर कैमरा चलाना गुनाह नहीं — लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि कैमरा केवल वही दिखाए जो उनकी मर्जी का हो।

अब वक्त है कि कैमरे पर हमला करने वालों को कानून का आईना दिखाया जाए।

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संपादक –

नाम: खुशाल सिंह रावत
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