उत्तराखण्ड
जुए के अड्डों पर दीपावली की ‘फुलझड़ी’, पुलिस की छापेमारी से उड़ गए जुआरियों के नोट — ₹6.67 लाख कैश के साथ 12 धरे
जुए के अड्डों पर दीपावली की ‘फुलझड़ी’, पुलिस की छापेमारी से उड़ गए जुआरियों के नोट — ₹6.67 लाख कैश के साथ 12 धरे
कालाढूंगी/लालकुआं:
दीपावली की रौशनी के बीच कई लोग जहां लक्ष्मी पूजन में जुटे थे, वहीं कुछ ने लक्ष्मी को ताश के पत्तों में फंसा रखा था। मगर इस बार किस्मत ने दांव पलट दिया—क्योंकि पुलिस की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ में जुआ के अड्डों पर बैठे खिलाड़ी खुद ही हार गए!
कालाढूंगी से लेकर लालकुआं तक, पुलिस की दो टीमों ने दो अलग-अलग जगहों पर छापे मारकर 12 जुआरियों को रंगे हाथों पकड़ा, जबकि बाकी अपने भाग्य के भरोसे अंधेरे में भाग निकले। मौके से ₹6.67 लाख से अधिक नगद, 52 ताश के पत्ते और कुछ अधजले सपने बरामद हुए।
🎯 मामला-1: कालाढूंगी जंगल में ‘ताश का महाभारत’
दीपावली की रात कोटाबाग के जंगल में कुछ ‘भाग्यशाली खिलाड़ी’ लाखों के दांव लगा रहे थे। लेकिन किस्मत की बाजी पुलिस ने जीत ली।
प्रभारी निरीक्षक अरुण कुमार सैनी के नेतृत्व में टीम ने मौके पर धावा बोला और पांच खिलाड़ी पकड़े गए। बाकी नौ खिलाड़ी अंधेरे में गुम हो गए — जैसे इनके नोट हवा में उड़ गए हों।
बरामदगी:
₹5,66,000 नगद, 02 गड्डी ताश, और एक त्रिपाल (जो शायद जुआरियों का VIP रूम था)।
गिरफ्तार खिलाड़ी: बेनट चरन, हेम चंद्र तिवारी, जसवंत सिंह, नमन जोशी, प्रेम चंद्र अग्रवाल — बाकी नौ की तलाश जारी।
💸 मामला-2: लालकुआं में दुकान के अंदर ‘सट्टे की सभा’
बिन्दुखत्ता की एक खाली दुकान में खेला जा रहा था जुए का ‘ग्रैंड फाइनल’!
एसओजी और लालकुआं पुलिस ने छापा मारा — और मौके से 07 जुआरी पकड़े गए।
मिलने वाला माल: ₹1,01,650 नगद और ताश के पत्तों की वही पुरानी 52 वाली किस्मत।
गिरफ्तार खिलाड़ी:
संजय सिंह, विजय जोशी, बलवंत सिंह, नरेंद्र सिंह, कुंवर सिंह, खड़क सिंह और कमलेश सिंह — अब कोर्ट में नई किस्मत आज़माने की तैयारी में।
🎲 दीपावली का ‘डबल गेम’
हर साल की तरह इस बार भी दीपावली पर ‘लक्ष्मी की पूजा’ और ‘ताश की पूजा’ साथ-साथ चली। फर्क बस इतना था कि इस बार पुलिस ने भी अपना “लक्ष्मी छाप अभियान” शुरू कर दिया।
एक तरफ लोग पूजा में “जय माता दी” बोल रहे थे, दूसरी तरफ जुआरी बोले जा रहे थे — “भाई, एक बाज़ी और!”
पर अफसोस — इस बार पुलिस की बाज़ी भारी पड़ गई।
⚡ कटाक्ष में सार
दीपावली पर जुआ खेलना परंपरा नहीं, आदत है — और इस आदत की कीमत हर साल कोई न कोई जेल में जाकर चुकाता है।
कहावत है, “जिस दिन ताश की गड्डी में किस्मत मिल जाए, उसी दिन पुलिस की गश्त न मिले।”
मगर इस बार गश्त मिली, किस्मत नहीं।
नोट: जुए के अड्डों पर पुलिस की कार्रवाई जारी है — अगला छापा कहाँ पड़ेगा, यह शायद वही जाने जो ताश के पत्तों से अपना भविष्य पढ़ते हैं।




