उत्तराखण्ड
मुख्यमंत्री की सुरक्षा में ‘खतरा’ बने पत्रकार! – सचिवालय से आया चौंकाने वाला फरमान
मुख्यमंत्री की सुरक्षा में ‘खतरा’ बने पत्रकार! – सचिवालय से आया चौंकाने वाला फरमान
देहरादून। उत्तराखंड सरकार का सूचना एवं लोक संपर्क विभाग अब पत्रकारों की भीड़ को मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए “अस्वीकार्य स्थिति” मान रहा है। विभाग द्वारा जारी एक आधिकारिक पत्र में मीडिया संस्थानों से अनुरोध किया गया है कि वे सचिवालय परिसर में मुख्यमंत्री के आगमन के दौरान अपने रिपोर्टर्स और प्रतिनिधियों की संख्या सीमित करें। कारण? मुख्यमंत्री जी की सुरक्षा में कथित तौर पर ‘अड़चन’ पैदा हो रही है!
पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि जब मुख्यमंत्री सचिवालय आते हैं, तो मीडिया के लोग “अधिकारिक रूप से एकत्र हो जाते हैं,” जिससे मुख्यमंत्री की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है। ऐसे में मीडिया हाउसों से अनुरोध किया गया है कि वे अपने प्रतिनिधियों की संख्या पर नियंत्रण रखें और केवल “आवश्यक प्रतिनिधियों” को ही भेजें।
पत्रकारों पर सिकंजा या सुरक्षा का नया पैमाना?
अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार को पत्रकारों की मौजूदगी से वास्तव में खतरा है या फिर यह मीडिया की स्वतंत्रता पर एक और नियंत्रण की कवायद है? क्या मुख्यमंत्री की सुरक्षा का मतलब पत्रकारों की आवाज़ दबाना है? आखिरकार, एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया का काम ही सवाल उठाना होता है, और अगर सवाल सरकार को असहज कर रहे हैं, तो इसका हल प्रतिबंध नहीं बल्कि पारदर्शिता होनी चाहिए।
मुख्यमंत्री से सवाल पूछना अब खतरे का संकेत?
पत्र की भाषा पर गौर करें, तो यह संकेत मिलता है कि मुख्यमंत्री के आते ही रिपोर्टर्स का सचिवालय परिसर में मौजूद होना कोई अवैध गतिविधि हो गया है! क्या सरकार को अब पत्रकारों के कैमरों और माइक से डर लगने लगा है? क्या यह इशारा है कि अब मुख्यमंत्री से सवाल पूछना खतरे का संकेत बन चुका है?
‘छांट-छांटकर’ बुलाए जाएंगे पत्रकार?
पत्र में एक और दिलचस्प बात है—”आवश्यक होने पर ही मीडिया प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाएगा।” इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या अब पत्रकारों को ‘फिल्टर’ किया जाएगा? केवल वे ही रिपोर्टर्स आमंत्रित होंगे, जो सरकार की ‘सुरक्षित पत्रकारिता’ को आगे बढ़ाते हैं? क्या जो तीखे सवाल पूछते हैं, उनकी एंट्री पर अब रोक लगेगी?
पत्रकारों की आवाज़ दबाने की साजिश?
इस आदेश से साफ़ है कि सरकार अब चाहती है कि सिर्फ ‘अनुकूल पत्रकारिता’ को ही जगह दी जाए। जिन मीडिया संस्थानों की खबरें सरकार को पसंद नहीं आतीं, उनके रिपोर्टर्स को सचिवालय से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
क्या मुख्यमंत्री जनता से कटने की राह पर हैं?
अगर मुख्यमंत्री अपनी ही सुरक्षा का हवाला देकर मीडिया से दूरी बना रहे हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। सवाल यह उठता है कि जब जनता का प्रतिनिधि ही जनता की आवाज़ (मीडिया) से बचने लगे, तो वह किसके लिए शासन कर रहा है?
सरकार को जवाब देना चाहिए
पत्रकारों को प्रतिबंधित करने की बजाय, सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर पत्रकारों की भीड़ से सुरक्षा को क्या खतरा है? क्या सुरक्षा तंत्र इतना कमजोर है कि पत्रकारों की मौजूदगी से डगमगा जाता है? और अगर ऐसा है, तो मुख्यमंत्री की सुरक्षा को लेकर असली खतरा कहां है—पत्रकारों से या सुरक्षा व्यवस्था की खामियों से?
बहरहाल, यह पत्र इस बात की ओर इशारा करता है कि उत्तराखंड सरकार अब अपनी छवि को नियंत्रित करने के लिए मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है। लेकिन क्या सच को दबाया जा सकता है? जवाब जल्द ही जनता देगी!




