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उत्तराखण्ड

छपेली:उत्तराखंड का एक और प्रसिद्ध लोक नृत्य

छपेली उत्तराखंड का एक और प्रसिद्ध लोक नृत्य है। ये पर्वतीय अंचल के सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य गीतों में शुमार है। इसकी खासियत गीतों और नाच में भरी मस्ती और उल्लास है, छपेली का मतलब छबीली से है। छबीली मतलब मस्तमौला और मिलनसार। जहां छबीली स्त्रियां बैठी हों या जिन गीतों छबीली स्त्रियों का बखान हो, ऐसे नृत्य गीत छपेली कहलाते हैं। इस नाच में दो प्रेमी दिलों के भावनात्मक आदान-प्रदान की खास अहमियत होती है। छपेली में दो मुख्य किरदार होते हैं- स्त्री और पुरूष। कभी कभार पुरूष ही स्त्री की वेशभूषा पहनकर उसका अभिनय करता है। नर्तक के हाथों में रूमाल होता है। पुरूष गाते हुए नृत्य करता है और स्त्री अपनी भाव भंगिमाओं से उसकी अभिव्यक्ति करती है। छपेली नृत्य पर आधारित गायन शैली है। बांसुरी और दूसरे वाद्य यंत्र इसमें सुरीली धुनें घोलते हैं। यह दो से ज्यादा लोगों द्वारा भी गाई जाती है। प्रेम और उसका इजहार ही छपेली का मुख्य विषय रहता है। आम तौर पर पहाड़ों में प्रचलित जीजा-साली के चुटीले संवादांे के इर्द गिर्द ही छपेली के गीतों के बोल बुने जाते हैं। इस नाच की रंगत ही कुछ ऐसी होती है कि इसमें शामिल और इसे देखने वाले मस्ती से सराबोर हो उठते हैं। उत्तराखंड के मेले त्यौहारों और उत्सव समारोहों में छपेली का प्रदर्शन विशेष रूप से किया जाता है।
छपेली की नृत्य शैली ढली हुई होती है जो धीरे धीरे रफतार पकड़ती है। अपनी खास ताल और रिदम के कारण छपेली को लोग काफी पसंद करते हैं। इसमें गीत की एक टेक होती है और बीच बीच में जोड़ लगाकर इसके कलेवर को बढ़ाया जाता है। गायकों के बीच में सवाल जबाव का सिलसिला चलता है। इन सवाल जबावों के बीच कलाकार विविध किस्म की नृत्य मुद्राओं से लोक गीत को लोक नाटक जैसा स्वरूप प्रदान करते हैं। छपेली में नृत्य की विभिन्न भंगिमाओं का ध्यान रखते हुए लोक गायक द्वारा गीतों की रचना की जाती है। इन गीतों में श्लीलता या अश्लीलता का ज्यादा ध्यान नहीं रखा जाता, चूंकि इनका विषय पूरी तरह से स्वछन्द प्रेम की अभिव्यक्ति पर आधारित होता है।

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